नाक कट गई खुलेआम। बेईमान तो हम तब भी थे, अब भी हैं। लेकिन पहले सब कुछ ढंका-छुपा था, अब सारी पोल खुल गई है। खेलों के 10 दिन पहले न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान कर दिया कि खेलों में उनकी जो टीमें आएंगी , उनकी सुरक्षा वो खुद करेंगे। ज़रा सोचिए, एयरपोर्ट पर टीम के उतरते ही सारे देशों की सुरक्षा एजेंसियां अगर अपने अपने काम में जुट जाएं तो क्या होगा। सबसे पहले भारत की एजेंसियां उनकी सुरक्षा जांच करेंगी.....फिर खिलाड़ियों की करेंगी। उसके बाद विदेश सुरक्षा एजेंसियों के लोग भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की जांच करेंगे। कहीं किसी के जूते-मोज़े में बम तो नहीं....कहीं किसी ने कोई छोटा चाकू तो नहीं छुपा रखा। सोचिए क्या नज़ारा होगा। ये हमारे रवैये पर भी तंज़ है, जिसके चलते हम सब हर चीज़ को ' हो जाएगा ' के अंदाज़ में देखते हैं। बात यहीं नहीं रुकी..अब तो ये भी पता चला है कि न्यूज़ीलैंड की टीमें खेलगांव के जिस टावर में रुकने वाली हैं , उसकी सफाई न्यूज़ीलैंड से बुलाए गए सफाईकर्मी करेंगे। इस पर खेलों की आयोजन समिति ने क्या जवाब दिया है , ये भी सुन लीजिए। उनका कहना है कि भाई सफाई के हमारे कुछ पैमाने (सब जानते हैं कि भारत मे साफ-सफाई का पैमाना क्या है) , न्यूज़ीलैंड के कुछ और हैं...हम कोशिश करेंगे कि उनके पैमाने के नज़दीक पहुंचें। अब आयोजन समिति इस बात पर विचार कर रही है कि न्यूजीलैंड के सफाईकर्मियों से ही क्यों न पूरे खेल गांव की सफाई करवा ली जाए। बहुत अच्छे...भई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल हो रहे हैं , तो उसमें सफाई से लेकर सुरक्षा भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होनी चाहिए। खैर अब बकरे की मोटी गर्दन काटने की तैयारी की जा रही है। कलमाडी के दिन गिने चुने रह गए हैं...लेकिन उन्हें अभी तक बख्शा क्यों गया था..इसका जवाब क्या है। शायद ये कि अगर पहले ही कलमाडी विदा कर दिए गए होते, तो आज किसकी नपती ? ज़ाहिर है शीला चाची की....तो चाची बच गईं ना..??? .इसीलिए कलमाडी अभी तक बचा कर रखे गए थे...बकरीद के दिन के लिए।
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