सारे दिन की व्यस्तता के बाद भी
मेरे अहसास के कुञ्ज में
उन शुभागत ,बसंती पलों का ,
स्मरण कौंध जाता है,
अक्सर....
जब थक कर कुम्भ्लाती ॥
मेरी सुकुमार छवि को॥
पुनर्नवा बना देता था...
तुम्हारा एक स्नेहिल स्पर्श....
संग लिए लाड-प्यार॥
मनुहार और वो सब कुछ...
जिन्हें छलावा कहने को ॥
जी नहीं चाहता...
जिनमे घुल कर...
भूल जाती हूँ....
मै अपने सब दुःख....
आह मेरा ''चिर-सुख ''॥
(सुमन इलाहाबाद की एक कुशल गृहस्थिन हैं। घर बाहर पूरा उनकी अंगुलियों पर है। व्यस्तता किसी बड़ी कंपनी के सीईओ जितनी। लेकिन लिखना उनकी थकान कम करता है।)
''मेरा चिर सुख''
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