सारे दिन की व्यस्तता के बाद भी
मेरे अहसास के कुञ्ज में
उन शुभागत ,बसंती पलों का ,
स्मरण कौंध जाता है,
अक्सर....
जब थक कर कुम्भ्लाती ॥
मेरी सुकुमार छवि को॥
पुनर्नवा बना देता था...
तुम्हारा एक स्नेहिल स्पर्श....
संग लिए लाड-प्यार॥
मनुहार और वो सब कुछ...
जिन्हें छलावा कहने को ॥
जी नहीं चाहता...
जिनमे घुल कर...
भूल जाती हूँ....
मै अपने सब दुःख....
आह मेरा ''चिर-सुख ''॥
(सुमन इलाहाबाद की एक कुशल गृहस्थिन हैं। घर बाहर पूरा उनकी अंगुलियों पर है। व्यस्तता किसी बड़ी कंपनी के सीईओ जितनी। लेकिन लिखना उनकी थकान कम करता है।)
''मेरा चिर सुख''
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
बहुत सुन्दर ...मन से निकली पंक्तियाँ
सुख चाहे कैसा भी हो उसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि उसकी 'याद' भी आंखों में एक चमक और दिल को एक सुक़ून देकर जाती है.. दुआ है कि सभी के जीवन में 'सुखों' की ऐसी फेहरिस्त लंबी हो :)
मैं भी उन खुश किस्मत प्रशंशकों में शामिल हो गया हूँ, जिन्हें 'सुमन' की नयी रचनाओं का बेसब्री से इंतज़ार रहता है. माँ सरस्वती उनकी लेखनी में सदैव बसी रहे...
मेरे छोटे से प्रयास को सराहना देने के लिए...तहे दिल से शुक्रिया....
Post a Comment