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देवता



देवता मै नहीं पालना चाहती...



क्यूंकि....तब......सहज और समयानुकूल ही...



वह लगने लगता है...



मेरा पथ-प्रदर्शक....



और ........पालने लगता है गुमान......



मेरा प्रारब्ध तय करने का......



और तब ...वहां जन्मने लगती है........



स्वयमेव एक अपेक्षा.....जिसके आगे मेरा....



सर झुक जाय.....स्वयं....सादर....देवता......



तुम तो स्वर्ग में ही भले....



यहाँ मुझे मिलने दो.....बावरी॥,



अलमस्त... नादान सी॥प्रिया बन कर.....



अपने ''बाल-सखा'' से...जिसमे अपनी आस्था सहित...



विलीन होना....



मेरे लिए...गरिष्ठ ना हो..........



जो सदा बिना कहे ही....



मेरे झुके-थके कंधे पर.....



अयाचित॥अनापेक्षित...और.......



भार-अभार से मुक्त.....



अपना स्नेह-पगा हाथ रख दे.......



और उबार दे....



मुझे अपने तईं .....



किसी भी समस्या से..........



कुछ हद तक ही ॥भले.....और बेशक..............



कभी-कभार ही..........यानी...........



'देवता' मै मानती ज़रूर हूँ.........



मगर ज़रूरी यह है कि....



.वह हो...इतना साधारण और अपना सा...कि॥



कहीं से...देवता न लगे मुझे......



और ना ही दुनिया को.........



और ना ही जिसके लिए.......



किसी ''कामायनी-कर'' को कहना पड़े...



''देव-दंभ के महा-मेध में....



सब कुछ ही बन गया हविष्य॥









सुमन












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वही हुआ



मैंने कहा था तुमसे


एक रोज़


पीले पड़ जाएंगे


ये पत्ते


फिर टूट टूट कर नीचे गिरेंगे


और तुम उन पर चलते हुए


दूर निकल जाओगे


तुम्हे पीछे मुड़ कर जो


नहीं देखना है


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