एक पिता का जवाब
अमिताभ बच्चन को लोग एंग्री यंगमैन के तौर पर जानते हैं ...लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि व्यवस्था पर उनका गुस्सा पर्दे पर लोगों ने बाद में देखा....उस कुंठा का पहला शिकार उनके बाबूजी यानी हरिवंश राय बच्चन ही हुए थे। अमिताभ ने उस घटना का ज़िक्र अपने ब्लॉग में किया है जो न सिर्फ, 60 के दशक के एक युवा की कुंठा बयान करती है, बल्कि उनके पिता हरिवंश राय बच्चन की उस शख्सियत को भी रेखांकित करती है , जो एक बड़े कवि होने के साथ साथ एक पिता भी है। ब्लॉग में बिग बी ने लिखा है कि यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उन्हें किसी भी हमउम्र की तरह , कई बार उद्देश्यहीनता का एहसास होता था। 50 और 60 के दशक में आज के जैसी उदारवादी अर्थव्यवस्था तो थी नहीं कि सबसे पास करने को कुछ न कुछ होता। तब इस तरह का एहसास किसी भी किशोर के मन में आना स्वाभाविक था। बिग बी ने लिखा है कि तब कई बार मन में सवाल उठता था कि --मैं आखिर इस दुनिया में आया ही क्यों हूं... कुछ ऐसा ही गुस्सा लेकर भावुक अमिताभ बच्चन एक दिन अपने पिता से अपने सवालों का जवाब मांगने गए। पिता अपने कमरे में बैठे कुछ लिख रहे थे। गुस्से में ,चिल्ला कर अमिताभ ने पूछा --आपने मुझे पैदा क्यों किया ? पिता ने चौंक कर उनकी ओर देखा ...फिर चुपचाप कुछ समझने की कोशिश करते रहे...कोई कुछ नहीं बोला...अमिताभ बच्चन के मुताबिक --कमरे में मौन कुछ इस तरह पसर गया कि या तो मुझे तेज़ तेज़ चलती अपनी सांसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी या फिर बाबूजी की मेज़ पर रखी टेबल क्लॉक की टिक टिक। पिता की ओर से जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैं चुपचाप उल्टे पांव अपने कमरे मे वापस लौट गया... लेकिन रात भर सो नहीं पाया....अगली सुबह मेरे पिता जी मेरे कमरे में आए ...मुझे जगाया और मेरे हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा पकड़ा दिया--मैंने देखा वो एक कविता थी--नई लीक..जो कुछ इस तरह थी।
नयी लीक
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ज़िंदग़ी और ज़माने की कशमकश से
घबराकर मेरे लड़के मुझसे पूछते हैं
'हमें पैदा क्यों किया था ? '
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है
कि मेरे बाप ने भी मुझसे
बिना पूछे
मुझे पैदा किया था
और मेरे बाप से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें
और बाबा से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें
ज़िंदग़ी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी,
अब भी है..शायद ज़्यादा
आगे भी होगी शायद और ज़्यादा
तुम ही नयी लीक धरना
अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना।
--हरिवंशराय बच्चन
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3 comments:
आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.
शुक्रिया , उड़न तश्तरी जी
Nice translation of amitabh's post in english. I also happen to have just finished reading all the 4 volumes of Harivansh Bachchan's autobigraphy. In the last vol. ( dashdwar se sopan tak), Hrivanshji has written that amitabh had a masterly command over both english and hindi and that his letters to him were literary pieces. He has also written that whenever Amitabh would write his autobiography , it would be better that that written by him. The blog of Amitabh , i think, is nothing but a manifestation of that urge.Of course, his blog only vindicates the beliefs of his father.
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