'घर का सारा काम कराती हैं और तीन घंटे बाद छोड़ती हैं मेमसाब... '
'क्या क्या काम करती हो बेटा वहां ' मेरे पसीज उठे मन ने सवाल पूछा।
'झाड़ू-पोंछा,घर के सब लोगों का कपड़ा धोना, खाना बनाना... ' एक चुप्पी के बाद उसने मुंह खोला ।
मेरे पास पूछने के लिए कोई सवाल नहीं था-जवाब तो खैर क्या होता...लेकिन मुझे उसकी शक्ल में अपनी बेटी नज़र आ रही थी। वो हमारे घर काम करने वाली बाई की बेटी थी....और हमारे अपार्टमेंट्स में रहने वाले पाठक जी के घर काम करती थी। पाठक जी के घर पर उनकी मां का राज था और आज बारिश में उन्होंने इस बच्ची से जमकर कपड़े धुलवाए थे....अपने सूजे हुए नन्हें गुलाबी हाथ वो दूसरे हाथ से सहला रही थी....मौन थी लेकिन मुझे लगता था कि सवाल पूछ रही है.....हम सब से....लेकिन हममे से किसी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा। मुझे लगा -मैं बहरा हो गया हूं...मुझे सिर्फ अपने मतलब की बातें सुनाई पड़ती हैं...बच्चों की फीस, उनके बर्थ डे गिफ्ट्स,कार का एसी बनवाना, घर का ईएमआई...नये घर का लोन सैंक्शन करवाना...और अपने बच्चों की..हां ...अपने बच्चों की सारी ज़िदें पूरी करना। लेकिन फिर भी मैं बहरा हूं...क्योंकि मुझे ख्वामख्वाह तंग करने वाली आवाज़ें अच्छी नहीं लगतीं....आवाज़ें ... जो मुझे अपने छोटेपन का अहसास दिलाएं
10 comments:
अच्छा लगा आपको पढ़ना..
गूंगा बोलने वालों से अधिक मजबूत बोलता है। लाजवाब अभिव्यक्ति।
ऐसी मेमसाबों की कमी नही जो छोटे मासूम बच्चों से भी काम कराने में झिझकती नही हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को जो इन मासूमों का बचपन छिनने में भागीदार होते हैं ।
तकलीफ़ होती है इस एहसास से कि हम सिर्फ़ गूंगे ही नहीं बल्कि अंधे, बहरे और असंवेदनशील भी हो गए हैं। कैसा माहौल बना दिया है हमने जहां नन्हीं पौध बोई तो ज़रुर जाती है लेकिन उसे फलने-फूलने लायक साधन मुहैया कराने का दायित्व कोई लेना नहीं चाहता।
इन बच्चों को देखकर ऐसा लगता है कि हम आजाद भारत में नहीं, बल्कि गुलाम भारत में खड़े है। इनकी दर्द भरी दास्तान सुनकर एक आम आदमी के दिल में तो इनके प्रति भावुकता की भावना आ जाती है, मगर ऐसे निर्दयी लोग भी है जिन्हे इनकी कोई परवाह नहीं है। चाहे कैसा भी मौसम हो इन्हे तो दिनभर काम करके मालिक की जी हजूरी करनी ही है .दिल दुखता है एक टीस होती है ऐसे में कुछ ना कर पाने की...
सर किसी की बेबसी को कहानी बना कर वाह-वाही लूटना आसन होता है अपने आप को सवेदनशील दिखाना मुश्किल नहीं होता कठिन होता है तो बस उस सवेदेनशीलता को वयवहार में बदलकर उसका भला करना जिसके प्रति संवेदनशील होते हुए आपने उसकी तकलीफ को शब्दों के मोतिओं में पीरों कर इस द्रवित कर देने वाली कहानी की माला तैयार की है. कठोर भाषा के प्रयोग के लिये माफ़ी चाहता हूँ
सर मेरा एक निवेदन है की आप हम जो अपनी बात आपके सरपंच जी नामक मंच पर रखतें हैं अगर आप भी हमारे कमेन्ट पर अपना कमेन्ट करें तो हमें भी लगेगा की येह वार्तालाप दोनों तरफ से हो रहा है
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