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खबरी की पांच छहनिकाएं


दीवार पर गढ़ी कील,
दिल-दीवार,
बाकी तुम..!

बांस सा ज्वार,
फनकार,
बंसी की धुन!
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चुक गए सवाल,
सांस,
मोक्ष-

रंगीन पानी...
तेरा अक्स...
होश!
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आहट,
अकेलापन,
डर-

न तू,
न मां,
न घर!
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खारा सागर,
टूटी बोतल,
जिन्न-

कारे आखर,
कोरे कागज,
तेरे बिन!
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तड़पती भूख,
रेगिस्तान,
प्यास!

वादियां... झरना...
तू...
काश!
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देवेश वशिष्ठ खबरी
9953717705

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3 comments:

Manojtiwari said...

bahut sahi, maan gaye

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मुझे भी बहुत ज्यादा छंद ज्ञान नहीं है,
इसीलिए रस लेने में कोई व्यवधान नहीं है।
वैसे हम जैसे अनाड़ी भी कविता बना डालते हैं,
लेकिन ऐसी छहनिकाओं को गढ़ना आसान नहीं है॥

उई बप्पा... ई तऽ तुकबन्दी हुइ गई। :)

Manojtiwari said...

tripathiji aapki tookbandi bhi shaandar rahi