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दिल में कारगिल

कारगिल विजय की दसवीं सालगिरह पर ख़ास कार्यक्रम के दौरान राकेश जी ने अपने कारगिल रिपोर्टिंग के अनुभव बांटे उस वक़्त टीवी जर्नलिज़म का वो बूम नहीं था जो आज देखने को मिलता है। इसके बावजूद कुछ चुनिंदा चैनल थे जिन्होंने अपनी टीमें कारगिल युध्द को कवर करने के लिए भेजी थी, राकेश जी उन ख़ुशनसीब पत्रकारों में से एक थे। कार्यक्रम के दौरान उनकी तस्वीरें भी दिखाई गई जिनमें बोफ़ोर्स तोप हो, अलग-अलग बटालियन्स के जवान हो या फिर धमाकों की आवाज़ बंद होने के बाद ख़ामोश, ख़ूबसूरत वादियां हो, इन सभी को देखकर वहां मौजूद पत्रकारों के अनुभव का सिर्फ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है उसे महसूस करना मुश्किल है। लेकिन सिर्फ़ मज़ा ही नहीं था ख़तरा भी था, राकेश जी ने ये अनुभव भी बांटा की किस तरह एक मिसाईल वहां मौजूद पत्रकारों के उपर से होकर गुज़री और कुछ दूरी पर एक ट्रक पर जाकर गिरी। यहां से लौटते वक़्त बुरी तरह से ध्वस्त हुए इस ट्रक के अवशेष भी इन लोगों ने देखे।

यहां मौजूद सभी पत्रकारों को कुछ हिदायतें भी दी गई थी और थोड़ी ट्रेनिंग भी, क्योंकि भले ही ये पत्रकार सिपाही नहीं थे, लेकिन थे तो वॉर फ़ील्ड में ही। अब बाक़ायदा आर्मी की तरफ़ से कोर्सेस करवाये जा रहे, जिनमें वॉर रिपोर्टिंग की बारीक़ियां सिखायी जाती हैं। हमारे एक अन्य सहयोगी मनीष शुक्ला जो की इस कार्यक्रम का हिस्सा थे ऐसे ही एक स्पेशल कोर्स के लिए सिलेक्ट हुए हैं। मनीष ने इस ख़ास पेशकश के लिए कारगिल के आज के हालात पर वहां जाकर कुछ बेहतरीन पैकेज़ेस बनाए थे। इन ख़ूबसूरत तस्वीरों को देखकर आपका मन भी यहां जाने का होगा और यहां बस जाने का होगा। लेकिन पाकिस्तान के नापाक इरादों की वजह से इस जगह की जो तस्वीर दुनिया के सामने गई है, वो इसकी ख़ूबसूरती से इकदम जुदा है।

कारगिल का नाम ज़ेहन में आते ही सामने जंग की भयावह तस्वीर होती है, कानों में धमाकों की गूंज होती है और सैंकड़ों शहीदो के चेहरे होते हैं। कारगिल याद किया जा सकता है दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत टुरिस्ट स्पॉट्स में से एक होने के लिए लेकिन इसे पाकिस्तानी फौज और घुसपैठियों ने तब्दील कर दिया है एक ख़तरनाक वॉर फ़ील्ड में। राकेश जी और मनीष के साथ किये इस कार्यक्रम का नाम हमने रखा था, “कारगिल कल और आज”, विश्वास जानिए इन दोनों से बातचीत के बाद एहसास होता है कि कारगिल आज भी उतना ही ख़ूबसूरत है जितना कल था, हां वहां टैंकर्स की तैनाती, बड़ी तदाद में फौज, आंखों को चुभती है लेकिन इस जगह की सुरक्षा के लिए वो देश की मजबूरी भी है।
राकेश जी भी बीते दिनों की यादों में खो गये थे और उनका कहना था की वो दोबारा कारगिल जाना चाहेंगे, लेकिन वॉर कवर करने नहीं बल्कि इसकी ख़ूबसूरती का नज़ारा करने के लिए। मनीष की ज़्यादातर रिपोर्ट्स में भी इस इलाक़े के बाशिंदों का यही दर्द सामने आते है कि जो जगह पर्यटकों के लिए स्वर्ग है उसे नर्क में तब्दील कर दिया गया है। यहां के तमाम होटल्स युध्द के दौरान तबाह हो गए थे। अब बहुत हद तक इस जगह को फिर से बसाने की कोशिश हो रही है। किसी एक्सीडेंट के बाद रिकवर करने में जैसे एक इंसान को समय लगता है वैसे ही कारगिल को भी रिकवर करने में वक़्त लगेगा और ये भी सही है कि जैसे ज़ख्मों के निशान रिकवर करने के बावजूद रहते है, कारगिल के ज़ख्मों के निशान भी हटना मुश्किल है। लेकिन यहां के लोगों को अब भी उम्मीद है की कारगिल अपनी सही वजहों के लिए जाना जाएगा न कि जंग के लिए।

राकेश जी, मनीष या जो भी इस जगह पर गया इसकी यादें अब भी उनके दिलों में ताज़ा हैं। मैं ख़ुद कभी कारगिल नहीं गया लेकिन इस पर ये कार्यक्रम करने के बाद और अपने सहयोगियों से इसकी ख़ूबसूरती के बारे में जानने के बाद, यहां के बेहतरी नज़ारों की तस्वीरें देखने के बाद ये मेरे भी दिल में बस गया है। जब मौक़ा मिलेगा में यहां ज़रुर जाऊंगा। आप को मौक़ा मिले तो आप भी जाईएगा, क्योंकि कारगिल में अगर हालात सामान्य होंगे तो ये नापाक मंसूबे वाले दुश्मनों को भी क़रारा तमाचा होगा। जय हिंद

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3 comments:

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

जय हिन्द प्रवीन जी... राकेश जी के बारे में ये जानकारी तो मुझे भी नहीं थी... अच्छा फौजी की ड्रेस में एंकर हैं या कोई फौजी...

Manojtiwari said...

वाह ! वाह राकेश जी और वशिष्ठ जी दोनों ही छा गए राकेशजी का मैंने कारगिल स्पेशल देखा था वशिष्ठजी की तरह मुझे भी नही पता था की राकेशजी ने कारगिल वार कवर की हुई है। ये राकेश जी की देशभक्ति ही थी जिसने राकेश जी को कारगिल को कवर करने के लिए प्रेरित किया होगा नही तो वार के समय लोग बचाव के लिए युद्घ क्षेत्र से दूर भागते हैं वहां जाने का साहस वोही लोग उठा पाते हैं जिनमे देश की लिए और साथ ही अपने प्रोफेशन के लिए कुछ विशेष कर गुजरने का ज़ज्बा हो। राकेशजी के इस ज़ज्बे को मैं सलाम करता हूँ
वशिष्ठजी जी का लेख भी मीडिया में काम कर रहे लोगों के ऊपर अच्छे से अच्छा करने और एक्सक्लूसिव देने के दबाव तथा उनकी संवेदनाओं का भली भाती निरूपण करता है आपके इस सुंदर लेख के लिए आपको साधुवाद देता हूँ

Dr. Praveen Tiwari said...

अनुभवी पत्रकारों के साथ काम करने का एक फ़ायदा ये भी है की आप उस दौर को समझ सकते हो जब आप पत्रकारिता में नहीं थे। कारगिल के बारे में जो कुछ प्रोग्राम के दौरान मैंने समझा वो जानकारियां आगे भी बहुत काम आयेंगी। धन्यवाद राकेश जी।