अंगडाई लेते मेरे मैले ख्वाबों को
तूने छू लिया था हौले से...
जैसे पहले चुंबन सा स्पर्श था वो...
और मैं जी लिया था ज़िंदगी मेरी...
ख्वाबों में हकीकत की दुनिया...
वो मोतियों की दुनिया थी...
आंखों से झरती थी...
और गर्म पानी का फव्वारा बुझाता था
उस शहर की प्यास
मैं अजीब सा था उन दिनों...
इन अजीब सी बातों की तरह...
बादल के पीछे दौड़ता था मैं...
जमीन से उठाता था किरच
और उसकी चमक देखकर हो जाता था खुश...
उतना जितना आज नहीं होता सच के हीरे पाकर...
अजीब सा था उन दिनों...
मैं भूल जाता था भगवान का अस्तित्व
मेरे सामने
और मैं बन जाता था रक़ीब
तेरा... तेरी दुनिया का
मैं कुछ नहीं था... पर तेरे साथ था...
बहुत दिन बाद आज लौट आया है वो दिन
मेरे बदन में छिपकर बैठ गई है तेरी रुह...
और मैं फिर बन गया हूं तेरा दुश्मन
आहिस्ता आहिस्ता...
देवेश वशिष्ठ ‘खबरी’
1-9-09
मैं तेरा, तेरी दुनिया का
September 01, 2009 |
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खबरी
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4 comments:
जबरदस्त!
देवेश
मैं तुम पर घमंड कर सकता हूं
bilkul deveshji, rakesh ji ka garv banne ki kshmta rakhte hain. wo ab apni kitab bhi nikal sakte hain
आज मैंने आपका आशीर्वाद पा लिया सर...
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