जो बीत गई सो बात गई
एक उमर धुंआ होने को है
वो प्रेम प्यार, वो प्रीत गई
एक सूना घर , ऊंची खिड़की
वो नन्हीं सी छोटी लड़की
रातों को तुम्हें जगाती है
वो अब भी तुम्हें बुलाती है
अपनी पहचान छुपाती है
कहने सुनने की हर हसरत
दिल ही दिल में रीत गई
ओ....बचपन के मीत मेरे
जो बीत गई सो बात गई
2 comments:
वाह सर बहुत उम्दा आपकी इस कविता से बचपन की यादें ताजा हो गईं
''सब बीत गया......''
क्यूँकी ..बीतना तो तयशुदा है.......
पर तुम हारे कहा...??
वो बुझे चाँद की गवाही में...
छत पर की गई फ़िज़ूल सी बातें....
कल भी पता पूछ रही थीं तुम्हारा...
गई रात....तुम्हे याद कर रहे थे गुलमुहर...
पलाश को देखो....गहरा रंग चढ़ा है उस पर...
प्रौढ़ होती सरसों नाचने लगी है..
गेहूं की बालियाँ भी भूरी हो गई है....
क्या तुम..अल्लहड़ ही रहोगे सदा...........??
सुमन..
Post a Comment