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अन्ना के बहाने

तेरह दिनों के अनशन के बाद अब बहस इस बात पर हो रही है कि अन्ना को क्या हासिल हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि वाकई उन्हें कुछ मिला या नहीं॥लेकिन दो-तीन बातें ज़रूर साबित हुईं।
एक-तमाम सांसदों, विधायकों और ज़िला स्तर के नेताओं को मालूम हो गया कि आम आदमी के मन में उनकी क्या इज़्ज़त है...दो-अन्ना जैसा सीधा और बेलाग बातें कहने वाला कोई भी आगे आएगा तो पूरा देश उसके पीछे चल पड़ेगा। और तीसरा ये कि लोगों में उम्मीद बची है। इसीलिए लोग गर्मी बरसात के बावजूद ये देखने आए कि देखें इस युग का गांधी कैसा है। कभी कभी मुझे लगता है कि इस आंदोलन को अन्ना और आगे बढ़ा सकते हैं। वो इसे मूल्यों के आंदोलन में बदल सकते हैं। हालांकि इसी लड़ाई में उन्हें अंदाज़ा हो गया है कि आंदोलन की सफलता बहुत कुछ उसके विरोध पर भी निर्भर करती है। सरकारी हलके से जितनी बातें उनके खिलाफ कही गईं, वो सब उल्टी सरकार को पड़ीं।
किसी ने कहा-अन्ना ज़िद्दी हैं, किसी ने कहा-सिस्टम बदलना चाहते हो, तो इलेक्शन लड़ लो। किसी और ने तो ये भी कह डाला कि अन्ना की मेडिकल जांच सरकारी डॉक्टर से नहीं कराई गई..यानी कि अनशन पर संदेह।

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1 comments:

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

अन्ना के अनशन तक पर संदेह जताकर लालू यादव ने सिर्फ अपनी नैतिकता भर बताई है कि वो इस विरोध में होते तो क्या करते... ?