RSS

'वो' गीता आंटी थीं



आज टीचर्स डे है और मुझे अपनी एक टीचर की याद हो आई है। पूरी पढ़ाई के दौरान न जाने कितने अध्यापक देखे होंगे मैंने॥लेकिन याद सिर्फ उनका चेहरा है। मैं कक्षा ४ में पढ़ता था...पीलीभीत के लायंस बाल विद्या मंदिर में। आमतौर पर टीचर के नाम के आगे दीदी या मैम आदि शब्द जोड़ दिए जाते हैं। उस स्कूल में नाम के आगे आंटी जोड़ा जाता था। आज शायद कोई भी टीचर अपने नाम के आगे ये विशेषण जोड़ा जाना पसंद न करे...लेकिन उस स्कूल में तब ऐसी परंपरा थी। आज न जाने वो परंपरा है या नहीं॥खैर ...तो वो गीता आंटी थीं। जैसे आजकल स्कूल बसें या रिक्शा होते हैं....वैसे ही तब एक साधन इक्का भी हुआ करता था। मैं मोहल्ला कुम्हरगढ़ से इक्के में बैठता था॥पीछे वाली सीट पर। और लक्ष्मी टॉकीज़ के आस-पास किसी इलाके से गीता आंटी इक्के में बैठती थीं॥पीछे यानी ठीक मेरे पास। यकीन कीजिए॥मुझे वहां से स्कूल तक का सफर बड़ा आसान लगता था। मैं पढ़ाई में अच्छा था और वो मुझे खड़ा कर सवाल भी पूछती थीं। एक और बात होती थी। हर शनिवार को हाफ डे होता था। और उससे ठीक एक घंटे पहले गीता आंटी हम सब को पीछे के लॉन में ले जातीं॥और सबसे कोई गाना गाने को कहतीं। उन नवोदित गायकों में मैं भी होता था और हर हफ्ते मेरी ज़ुबान पर एक ही गाना होता था। 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को'......ये गीता आंटी की फरमाइश भी होता था। फिर साल भर बाद मैं पांचवीं में गया...तो गीता आंटी से मुलाकात सिर्फ इक्के भर की रह गई। फिर छठवीं में दूसरे स्कूल में भर्ती हुआ , तो सब पीछे छूट गया। कक्षाएं बदलती गईं...और गीता आंटी न जाने कहां खो गईं। फिर पिताजी का तबादला....नया स्कूल...नये टीचर॥नया माहैल.....लेकिन कहीं कोई उन जैसा नहीं मिला। बाद में फेसबुक पर लायंस के पुराने बच्चों को खोजने की खूब कोशिश की...ताकि उनके ज़रिये कुछ पता हो सके। लेकिन कुछ पता नहीं चला। मुझे लगता था कि जितना उन्होंने मुझे समझा...उतना किसी ने नहीं। अज॥जब मेरे दफ्तर के तीन बच्चों ने हैप्पी टीचर्स डे का समस भेजा...तो मुझे गीता आंटी याद आ गईं।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments: