"चोर की दाढी में तिनका" पर जो बवाल मचा , और उसके बाद सारे सांसद जिस तरह से अन्ना के खिलाफ इकट्ठे हुए.. उससे कुछ और मुहावरे प्रासंगिक हो चले हैं.....जैसे..चोर चोर मौसेरे भाई, उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे..चोरी ऊपर से सीनाजोरी , इत्यादि इत्यादि। वैसे अब वो दिन आने वाला है, जब नेता मार खाएंगे..अफसर तो निशाने पर पहले से ही हैं..और ये परेशानी भी उन्हीं लोगों को हो रही है, जो मानते हैं कि सांसद बनकर वो एक कवच पहन लेते हैं...किसी की इतनी हिमाक़त कि हमें चोर कहे...पकड़कर संसद में लाओ उन सबको जिनकी कलम या ज़ुबान से हमारे इस अधिकार को ख़तरा है...
देश जब इन बहस-मुबाहिसों में मशगूल है, एक दूसरी तस्वीर भी उभरती है-देश में तेजी से बढ़ रही नवधनाढ्यों की क्षुद्र मानसिकता और उसके चलते उनके लगभग आपराधिक होते आचरण की तस्वीर। रोहिणी इलाके में एक डॉक्टर दंपत्ति अपनी नाबालिग मेड को घर के एक कमरे में बंद कर छुट्टियां मनाने परिवार समेत बैंकॉक चले गए। छह दिन तक भूखी - प्यासी रहने वाली इस लड़की की करुण पुकार जब पड़ोसियों ने सुनीं..तो पुलिस को इत्तिला की..और उसे किसी तरह बाहर निकाला गया। ये देश के किसी गांव या कस्बे की कहानी नहीं है, देश की राजधानी के एक इलाके की खबर है। उसी दिल्ली की, जहां संसद है और जिसमें करीब 800 जन-प्रतिनिधि रोज़ देश के लिए काम करते हैं और नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते। उन्हें ये कतई मंजूर नहीं है कि कोई इस बात पर टिप्पणी करे कि उनके कर्तव्य त्या हैं। हां..अधिकार की बात ज़रूर वो करते हैं। जैसे लाल बत्ती की कार चाहिए...तनख्वाह और भत्ते और चाहिए..और वो कवच भी...जिस पर कोई कभी हमला न कर सके। लेकिन रोहिणी की उस बच्ची की हालत जानना शायद उसके कर्तव्यों की लिस्ट में नहीं है। उसके बारे में शायद इन 800 माननीयों में से किसी के पास सोचने के लिए वक्त भी नही है। देश इसी तरह चलता रहेगा...अन्ना और सरकार में से कौन सही है..दफ्तरों में, बसों में और घरों में भी लोग इस पर लड़ते झगड़ते रहेंगे, लेकिन इतना वक्त किसी के पास शायद ही होगा कि कोई उन हलात के बारे में सोचे जो किसी नाबालिग बच्ची को झारखंड से दिल्ली आकर बिकने पर मजबूर करते हैं।
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