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मन्नत के धागे

ऊंची पहाड़ी पर मंदिर है। मान्यता है कि मुरादें पूरी होती हैं। साल में जब मेला लगता है तो सैकड़ों लोग उमड़ आते हैं। आम दिनों में बीस-पच्चीस लोग तो चले ही आते हैं। मंदिर के सामने खड़ा है एक पेड़। उधर मंदिर में मुराद मांगी, इधर निकल कर पेड़ पर मन्नत का धागा बांधा। पेड़ धागों से अटा पड़ा है (पेड़ का जीवन बचाने के सवाल पर बाद में विचार कर लेंगे)। मेले वाले दिन भारी रेलमपेल। दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु। मेला भर उठता है पहाड़ी के नीचे। मेला देखा। खाया-पकाया, थक कर रात को वहीं सो रहे। बाकी दिन भी पर्याप्त मात्रा में श्रद्धालु पहुंच ही जाते हैं! सो, भगवान भी विश्वसनीयता को लेकर सतर्क हो गए हैं। भले कलयुग हो, भगवान के घर कोई देर-सबेर नहीं है! रात में ही धागा-प्रभारी से सामने रखवा लेते हैं पूरा हिसाब। एक-एक धागे की कैफियत पूछते हैं, परखते हैं, जांचते हैं, तब होता है किसी एकाध मन्नत पर विचार! लोभ-लालच के धागे भगवान एक नजर में ही ताड़ जाते हैं। धागा-प्रभारी तक ऐसे धागे भगवान के सामने लाने में हिचकता है। लेकिन आदेश है, सो हर दिन बांधे गए हर धागे का हिसाब कृपानिधान के सामने बखानता है।‘हां, प्रभु! वही कंजी आंखों वाले का धागा है। अपने ताऊ की जायदाद अपने नाम कराने के चक्कर में है। चांदी के मुकुट का लालच दे गया है।’ ‘धूर्त! डालो धागा कूड़ेदान में...’- प्रभु झटके में फैसला करते हैं। धागा-प्रभारी तत्परता से पालन करता है। ‘ये नीला वाला?’ ‘वह जो जोड़ा आया था और पत्नी कर रही थी प्रार्थना, उसी का है...।’ प्रभु को याद आया। पति हाथ जोड़े खड़ा था, पत्नी बुदबुदा रही थी। पति ने पूछा
चट से बोली थी कि क्यों बताएं? मन्नत बताई नहीं जाती। और मन्नत भी तो देखो क्या थी-‘ प्रभु! तुम्हारा लाख-लाख धन्यवाद। पति सुंदर है। घर सलोना है। बस सास से छुटकारा दिलवा दो, घर की चाबी मेरी कमर में लगवा दो। भंडारा करवाऊंगी।’ प्रभु हल्के-से मुस्करा भर देते हैं। ‘कूड़ेदान में डालूं!’ इसी बीच धागा-प्रभारी निवेदन कर देता है। झटके से टूट जाती है प्रभु की तंद्रा। ‘फौरन।’ प्रभु कुछ भी लंबित नहीं रखते!‘अब ये हरा धागा?’ ‘वह लड़की आई थी न, जो अपनी सौत से बचाने की प्रार्थना कर रही थी, उसी ने बांधा है।’ ‘वह जो अंग्रेजी में आ रहे विचारों को हिंदी में अनुवाद करके हमें सुना रही थी?’ ‘हां प्रभु, कितनी नादान थी। सर्वशक्तिमान के सामने खड़ी है और सोचती है प्रभु अंग्रेजी नहीं जानते! ये मनुष्य भी प्रभु!’ ‘खैर, क्या मांग थी?’ प्रभु ने धागा-प्रभारी को डपट दिया। ‘पति के जीवन से सौत निकल जाए, पूरी तरह से उसी का शिकंजा कस जाए।’ ‘अरे, उसकी तो अभी शादी ही नहीं हुई है।’ प्रभु गलती सुधारते हैं। फिर कूडेÞदान! प्रभु आधे घंटे में ही अधिकांश धागों का हिसाब कर देते हैं।‘अब ये तेरे हाथ में क्या चमक रहा है?’ प्रभु अचानक धागा-प्रभारी से पूछते हैं। ‘कृपा निधान, वह छोटी-सी बच्ची आई थी, जो अपनी नानी के लिए प्रार्थना कर रही थी, जिसका मोतियाबिंद का आॅपरेशन हुआ है। चाहती थी कि नानी की आंखें उसके जैसी नीली और खूबसूरत हो जाएं। क्या करूं?’ ‘ला, मेरे हाथ में दे।’ प्रभु ने हाथ में धागा लिया। मुग्ध होकर उसे निहारने में लगे। धागा-प्रभारी भक्त की भावना में डूबे प्रभु को जी भर कर निहारना चाहता है। उसे पता है, भगवान के चेहरे पर ऐसे अलौकिक भाव किसी चमत्कार से कम नहीं हैं।

किन्हीं अनुज खरे द्वारा लिखित

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1 comments:

Ruchi Rai said...

सर मैने आपका लेख'' मन्नत के धागे पढ़ा'', यकीनन ये बहुत ही अच्छा लेख है । सच में ये तो हम सभी जानते हैं की ईश्वर सर्वशक्तिमान है लेकिन फिर भी हम उससे तुछ्छ चीज़ें मांगने में अपना और ईश्वर दोनों का समय बर्बाद करते हैं, भौतिक चीज़ो के मांगने के चक्कर में खुद के साथ साथ उनको भी परेशान करते हैं । इतने अच्छे लेख के लिए शुक्रिया

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