बेटा बड़ा हो गया है
अरसे बाद अचानक
घर में किताबों की आमद बढ़ गई है
पॉलो कोल्हो..चार्ल्स डिकेंस...
.... रस्किन बॉंड और.....
और बहुत सारी दूसरी किताबें
मैं उन नये पन्नों की खुशबू सूंघता हूं
मुझे एक पीढ़ी का अहसास होता है
मैं उनके कवर पेज पर
एक ज़िंदगी की शुरुआत देखता हूं
नई कोंपलों जैसी नरमी.....
और सुबह के सूरज की किरणों की गुनगुनाहट
उनमें चिड़ियों की चहचहाहट भी सुनाई पड़ती है
मेरे भीतर का बच्चा बड़ा होने लगा है....
जब से क़िताबें.......घर आने लगी हैं
1 comments:
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
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