खतरनाक संकेत है ये चुप्पी..
उदय चंद्र सिंह
एक स्कूल टीचर उमा खुराना से जुड़े स्टिंग के प्रसारण से मचे बवाल का मामला थमता जा रहा है । स्टिंग का प्रसारण करनेवाले चैनल पर महीने भर का प्रतिबंध लग गया । रिपोर्टर की गलती और चालबाजी का खामियाजा चैनल को भुगतना पड़ा । प्रतिबंध की मार सह रहे लाइव इंडिया को मीडिया विश्लेषक मुफ्त की नसीहत भी दे रहे हैं । दरअसल, ऐसे समय में जबकि प्रसारण विधेयक को लेकर सरकार पर पहले से हीं दबाव है, इस मामले ने आग में घी का काम किया । किसी भी चैनल में ऐसे फोरेंसिक एक्सपर्ट की भर्ती नहीं होती जो मूल टेप के साथ छेड़छाड़ को पकड़ सके । लाइव इंडिया में भी कोई ऐसा शख्स नहीं था और यहीं वो मार खा गया । । टीवी जगत के जो पुरोधा आज यह सलाह दे रहे हें कि चैनलवालों को जांच परख कर उमा खुराना स्टिंग का प्रसारण करना चाहिये था उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है कि चैनलों में खबरें कितनी जांच परख कर और कैसे चलती है । अगर यह टेप उनके पास होता तो वो भी इसे देर सबेर चलाते । लाइव इंडिया पर उमा खुराना स्टिंग के प्रसारण के बाद कई दूसरे जिम्मेदार समझे जाने वाले चैनल स्टिंग का टेप मांगने लाइव इंडिया के दफ्तर पहुंच गये थे । जिन्हें मिला उन्होंने अपना अहो भाग्य समझकर खूब चलाया , बिना जांचे परखे । बाद में रिपोर्टर की कारस्तानी सामने आई तो लाइव इंडिया ने माना की उसने रिपोर्टर पर भरोसा कर गलती की । रिपोर्टर गिरफ्तार भी हुआ और उसके खिलाफ कानून अपना काम भी कर रहा है । लेकिन इस पूरे मामले में सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जो तेजी दिखाई उससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं ।
हालात 1975 जैसे हीं है जब देश में इमरजेंसी लगी थी । कई अखबारों के दफ्तरो पर तब ताले लग गये थे और कई पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया था । फर्क सिर्फ इतना था कि तब देश में टीवी चैनल नहीं थे । पंद्रह साल पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने निजी टीवी चैनल खोलने की इजाजत दी थी तब से लेकर आज तक देश में कई निजी टीवी चैनल खुल चुके हैं । उससे पहले सरकार इसे राष्ट्रहित के लिए खतरा मानती रही थी । सरकार की दलील थी कि टीवी चैनलों को प्राइवेट हाथों में देने से ना सिर्फ राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो सकता है बल्कि दूसरे देशो के साथ रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है । तब सरकार में बैठे एक तबके ने यह दलील भी दी थी कि इससे लोगों के नैतिक मूल्यों पर भी
खराब असर पड़ सकता है । लेकिन ये दलीलें ठहर नहीं सकी । कानून में पहले से हीं ऐसी व्यवस्था है कि कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल ना कर सके ।
उमा खुराना स्टिंग से मचे बवाल के बाद सरकार ने लाइव इंडिया पर महीने भर के प्रतिंबंध का ऐलान करने से पहले इस बात पर गौर करना भी उचित नहीं समझा कि इस फैसले का असर चैनल से जुडे लोगों के जीने के अधिकार पर भी पड़ सकता है । इमरजेंसी के दौरन एक बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि सरकार नागरिकों को जीने के अधिकार से वंचित कर सकती है । लेकिन फैसला सुनाने वाले जज ने रिटायरमेंट के बाद अपने उक्त फैसले पर अफसोस जताया था । सुप्रीम कोर्ट ने जीने के अधिकार की जो व्याख्या की है उसमें सम्मान के साथ जिंदगी जीने, जिसमें काम का अधिकार समेत शिक्षा, स्वास्थ्य, निजता और आने जाने का अधिकार शामिल हैं । दरअसल, लाइव इंडिया पर प्रतिंबंध लगाकर सरकार माहौल को भांप रही है । केबल टीवी नेटवर्क (रेगुलेशन) एक्ट 1995 के लागू होने के बाद सरकार ने पहली बार उस एक्ट के सेक्शन 20 (2) का इस्तेमाल करते किसी न्यूज चैनल पर प्रतिंबंध लगाया है ।
वैसे इस प्रतिंबंध के बाद उन टीवी चैनलों को भी अपनी हैसियत का सही अंदाजा लग गया जिन्होंने उमा खुराना मामले के बाद सार्थक टीवी पत्रकारिता पर बहस चला रखी थी । आनन फानन में ब्राडकास्टर एसोसिएशन ने बैठक बुला कर लाइव इंडिया पर लगे एक महीने के प्रतिंबंध की आलोचना की और सरकार से फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग भी रख दी । जिस दिन ब्राकास्टर एसोसिएशन सूचना मंत्रालय को विरोध पत्र भेज रहा था ठीक उसी समय मंत्रालय के एक कमरे में दो चैनलों के खिलाफ नोटिस टाइप किये जा रहे थे । इधर ब्राडकास्टरों ने सूचना प्रसारण मंत्री को मेमोरेंडम सौंपा वहीं दूसरी तरफ मंत्रालय ने दो चैनलों को केबल टीवी नेटवर्क ( रेगुलेशन एक्ट ) 1995 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया । एक चैनल को तो सिर्फ इसलिए नोटिस थमा दिया गया क्योंकि उसने निठारी कांड के एक आरोपी से पूछताछ की वो तस्वीरें दिखाई थी जो पुलिस रिकार्ड के लिए तैयार कराये गए थे । वैसे उमा खुराना स्टिंग के बाद ब्रॉडकास्टरों में भी शुरु से खींचातानी दिखी । एक चैनल के कर्ता धर्ता का यह बयान आया कि कि उमा खुराना स्टिंग ने उनका सिर शर्म से झुका दिया है लेकिन वो यह भूल गये कि उन्होंने हीं शक्ति कपूर का स्टिंग तैयार कराया था जिस पर बाद में काफी बवाल मचा था ।
वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब स्टिंग गलत साबित हुई हो । 2005 में एक टीवी चैनल ने एक टेप चलाया जिसमें सलमान को ऐश्वर्या को ना सिर्फ गाली देते हुए सुना गया बल्कि सलमान की तरफ से अंडरवर्ल्ड डॉन की धमकी भी दी गई ।लेकिन जब पुलिस ने टेप की जांच की तो पूरा मामला फर्जी निकला । इसी तरह 2006 में एक चैनल ने महाराष्ट्र के त्तकालीन गृह मंत्री माणिक राव गावित और बुलंदशहर की जेल में बंद अपराधी सुंदर भाटी के बीच बातचीत का टेप चलाया था । टेप से खुलासा हुआ कि कैसे एक मंत्री जेल मं बंद अपराधी से अपने दामाद के जमीन का झगड़ा सुलझाने के लिए फोन पर उससे मदद मांग रहा है । जिस चैनल ने इसे दिखाया उसका दावा था कि इसे पुलिस ने रिकार्ड़ कराया था लेकिन जांच में इस टेप को फर्जी पाया गया।
कुछ ऐसा की वाकया अगस्त 2006 के स्टांप पेपर घोटाले को लेकर हुआ । एक न्यूज चैनल ने इस मामले के आरोपी तेलगी और एनसीपी के विधायक अनिल गोटे के बीच हुई बातचीत का टेप चलाया था । जिसमें इस बात का दावा किया किया गया था मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख पूर्व में राजस्व मंत्री रहते हुए तेलगी को स्टांप वेंडर का लाइसेंस दिलाने में मदद की थी । बाद में इस टेप पर भी सवाल उठे । लेकिन इन मामलों में सूचना प्रसारण मंत्रालय को केबल एक्ट की याद नहीं आई । सूचना प्रसारण मंत्रालय से कोई यह तो पूछे कि जब यू ट्यूब से निकाल कर कई चैनलों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अश्लील पोल डांस दिखाया था तब वो कहां थे । उन चैनलों पर क्या कार्रवाई हुई क्या प्रियरंजन दास मुंशी बता सकते हैं ।
वैसे इस प्रतिबंध के बाद जिस तरह की चुप्पी है वो मीडिया की आजादी के लिए एक खतरनाक संकेत है । समय रहते हुए इस संकेत को समझना होगा । सरकार ने चैनल पर यह कहते हुए प्रतिंबंध लगा दिया कि उसने फर्जी स्टिंग का प्रसारण किया है । यह फैसला लेते हुए सरकार ने इस तथ्य पर गौर करना जरुरी नहीं समझा कि स्टिंग के मास्टर माइंड को गिरफ्तार किया जा चुका है और मामला कोर्ट में है । लाइव इंडिया धंधे का नया खिलाडी था लिहाजा उसपर सरकार ने चाबुक चलाने में कोई देरी नहीं की । सरकार को पता था कि इसके अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं लिहाजा वो अभी सीधे किसी को काट खाने की हिम्मत नहीं करेगा । चैनल ने भी मामले को अदालत में चुनौती देने के बजाय सरकार के आदेश
का सम्मान करते हुए महीने भर के लिए अपना प्रसारण बंद करने का एलान कर दिया ।
दरअसल सरकार ने प्रतिबंध लगाकर एक तीर से दो निशाने साधे । एक तो उसने जनता को यह बताने की कोशिश की कि गुनाहगार कोई भी हो उसे सजा मिलेगी । दूसरा इसके बहाने वो यह साबित करने में जुट गई है कि टीवी चैनलों पर लगाम कसने के लिए सरकारी आचार संहिता जरुरी है । सरकार यह भी टटोलना चाहती थी भविष्य में कंटेट कोड लागू होने पर अगर इससे भी कड़े फैसले लेने पडडे तो मीडिया और आम लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी । सरकार का यह तीर निशाने पर बैठा । सरकार को इतना तो समझ आ गया कि अगर सोची समझी रणनीति से काम हो तो मीडिया पर लगाम कसी जा सकती है ।
दरअसल सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक कंटेट कोड तैयार कर रखा है जिसमें यह बताया गया है कि न्यूज चैनलों को क्या दिखाना चाहिये और क्या नहीं । इसके उल्लंघन पर सजा भी होगी । दलील यह है कि इससे बेलगाम न्यूज चैनलों पर लगाम कसी जा सकेगी । मीडिया पर लगाम कसने की सरकारी कोशिश कोई नई चीज नहीं है लेकिन उमा खुराना स्टिंग के बहाने जिस तरह सरकार मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है वो लोकतंत्र को हीं नुकसान पहुंचायेगी । लेकिन यह भी जरुरी है कि पूरा मीडिया मन वचन और कर्मों से खुद को जिम्मेदार साबित करने की सार्थक पहल करे । वैसे सच बोलनेवालों को फांसी पर लटकाने की सोच कोई नई बात नहीं है मीडिया को धमकियों और ऐसी कार्रवाईयों की आदत सी पड़ती जा रही है । लेकिन यह आदत हीं कहीं हमारी कमजोरकी न बन जाये । टीवी चैनलों को सरकार को साफ बता देना चाहिये कि वो वो अपनी मर्यादाएं और सीमाएं समझते हैं और अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा सकते हैं और अपना कंटेट कोड खुद बना सकते हैं । अगर समय रहते ऐसा नहीं हुआ तो उमा खुराना स्टिंग और भूत प्रेत से
से जुड़ी खबरों को बहाना बनाकर टीवी चैनलों की सार्थक भूमिका को दबाया जा सकता है ।
( लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं )
फ्लैट न 6236, आलोक विहार- II
सेक्टर 50, नोएडा-201301
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comments:
स्टिंग आपरेशनों पर आपने अच्छी जानकारी जुटाई है। ज्ञानवर्धक लेख के लिए धन्यवाद।
Post a Comment