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बनना ही पड़ेगा सरपंच...



कई बार प्यादे से शतरंज जीत लिया जाता है... प्यादा आठ खाने फलांगता है और सरपंच बन जाता है... केवल प्यादा ही सरपंच बन सकता है... घोड़ा, वज़ीर, ऊंट, हाथी... ताकतवर सरपंच नहीं बन पाता... वो जो होता है वही रहता है... प्यादा धीरे धीरे दौड़ता है... कदम कदम चलता है.... और इसीलिए सबसे ज्यादा ख़तरा उसी को रहता है... जिसे देखो बेचारे गरीब को मारने की जुगत भिड़ाता है... उसके मरने का ज्यादा ग़म तो मालिक को भी नहीं होता... बाकी को बचाने को प्यादा शहीद कर दिया जाता है... तेज़ का जमाना है... टूट पड़ने का ज़माना है... घोड़ा बचाना है, प्यादा तो अड़ाना ही पड़ता है... ऊंट बचाना ज़रूरी है, और प्यादे का काम ही है... घर के हाथी के लिये शहादत देना... वैसे उसकी शहादत का ज्यादा मोल नहीं होता... प्यादे की ओर ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं होती... वो सरकता रहता है... आठ घरों तक... बस आठ घरों तक... फिर प्यादा शेर हो जाता है... वज़ीर बन जाता है... प्यादे को सब मारते हैं वो किसी को सीधे नहीं मार सकता... इसलिए तिरछा मारता है... प्यादा मज़बूर है... आठवें घर तक पहुंचना है... फिर प्यादा बड़े काम का हो जाता है... प्यादे का अहोदा बढ जाता है...वो राजा को बचाने लगता है... अकेले दम पर खेल जीत लेता है... प्यादा हमेशा फ़ायदेमंद होता है... प्यादा होता है तो वज़ीरों को बचाता है... वज़ीर बन गया तो राजा को... प्यादा सस्ता होता है... उसके लिये ज्यादा नहीं खर्चना पड़ता... उसे जाने पर शोर नहीं मचता... उसे चिल्ला चिल्ला कर अपनी कीमत बताने का अधिकार नहीं होता... प्यादे को घिसना पड़ता है... उसे आठ खाने लांघने होते हैं... प्यादे को अपनी कीमत बतानी नहीं दिखानी होती है... वज़ीर बनके... सरपंच बनके... शतरंज की बिसात बिछी है... लगता है अब बनना ही पड़ेगा सरपंच...।

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9211083217

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2 comments:

दिलीप कुमार पाण्डेय said...

आपने अच्छा लिखा है कोई दो राय नहीं कि लेखन शैली काफी अलग है । बचपन में शतरंज मैनें भी बहुत खेली हैं ऐसे मौके बहुत कम ही आए जब कोई प्यादा आठवें खाने तक पहुंच जाए । और अगर पहुंच भी जाता है तो भी उसे खेल से बाहर ही होना पड़ता है और उसकी जगह वजीर ले लेता है । शतरंज के खिलाड़ी प्यादे को इसीलिए आठवें खाने तक पहुंचाते हैं कि वजीर जिंदा हो जाए । आपने सही कहा उसे वजीर की चिंता होती है प्यादा कभी वजीर नहीं बनता। प्यादा शहीद होकर वजीर को नई जिंदगी देता है आपकी बात बिल्कुल सही है 'प्यादे की किस्मत' बहुत बुरी होती है

राकेश त्रिपाठी said...

pyaare dilip

tumne bhi bahut achcha likha hai