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स्लमडॉग पर सवालों के जवाब

स्लमडॉग ने एक बार फिर दुनिया भर में धूम मचायी है। फिल्मों से जुड़े सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ऑस्कर की खेप की खेप पर कब्ज़ा कर लिया। दस में आठ ऑस्कर जीते और अकूत वाहवाही भी। लेकिन किसी अंग्रेज़ की बनाई फिल्म को मिली ये कामयाबी हममें से कई लोगों को हज़म नहीं हो रही। इस कामयाबी पर कई लोगों के कई तरह के तर्क हैं ... उनका जवाब देना ज़रूरी लगा...इसलिए लिखने बैठ गया।
(1)'तारे ज़मीं पर' को ऑस्कर क्यों नहीं मिला--
फिल्म -तारे ज़मीं पर-एक बहुत बढ़िया फिल्म थी, लेकिन ऑस्कर में वो विदेशी भाषा की कैटेगरी में नॉमिनेटेड थी। ऐसी फिल्में जो अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषाओं में बनती हैं वो सीधे कम्पीटीशन में नहीं आतीं। वो विदेशी भाषा के वर्ग में आती हैं जहां उनका कम्पीटीशन भी विदेशी भाषाओं की फिल्मों से ही रहता है। ये कहना बेमानी है कि -तारे ज़मीं पर -को ऑस्कर नहीं दिया तो बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों की तौहीन हो गई। ये हम तब तक नहीं कह सकते जब तक हमें ये न पता हो कि उस वर्ग में जिस फिल्म को अवॉर्ड मिला है वो कैसी थी...हो सकता है -तारे से बेहतर हो...हो सकता है ...तारे से बहुत बेहतर हो....हो सकता है आमिर की इस फिल्म से वो फिल्म इतनी अच्छी हो कि तुलना ही न की जा सकती हो। इसलिए पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने की बजाय ये देखना चाहिए कि जिसे इनाम मिला है , उसकी खासियत क्या है। उसे देखा ही नहीं और कहने लगे ...अंग्रेज़ों ने बेमानी की है। हो सकता है बेमानी करते हों अंग्रेज़...लेकिन हमसे बड़े बेईमान तो नहीं हैं वो। कम से कम पुरस्कारों के बारे में। वर्ना ऑस्कर की इज़्ज़त इतनी क्यों है...आपको फिल्म फेयर और स्क्तीन अवॉर्ड्स...और तो और आपको राष्ट्रीय पुरस्कारों की कितनीइज़्ज़त है ..ये देखना हो तो इस बार के पद्म भूषण, पद्म श्री पुरस्कारों की लिस्ट देख लें..समझ में आ जाएगा कि ऑस्कर की इज़्ज़त इतनी क्यों है।
(2)ऑस्कर के लोग इतने दीवाने क्यों ?
इसलिए कि ये एवॉर्ड्स बड़े कड़े पैमाने पर तौले जाते हैं। फिल्म के एक एक फ्रेम , संगीत के एक एक टुकड़े को पैमाने पर तौला जाता है। ऐसी काट छांट होती है भइये कि आपकी हिंदुस्तानी फिल्में कहीं ठहरें ही नहीं। क्योंकि हमारे यहां तो पुरस्कार जान पहचान पर मिलते हैं..शायद इसीलिए आमिर खान खुद कभी भारत के किसी पुरस्कार समारोह में जाते ही नहीं...और इन्ही आमिर की फिल्में अगर ऑस्कर में जाती हैं , तो हमें तो खुश होना चाहिए कि कोई ऐसा भी है हमारे बीच जो इन सारी बाधाओं के बावजूद इतने बड़े कॉम्पीटीशन में घुस पाता है। लेकिन नहीं...एक अजब सी नालायकी है हमारे अंदर ....न कुछ करते हैं , न करने देते हैं। आप में से कुछ लोगों को शायद याद हो-कि शाहरुख खा4न को जब पहले फिल्म फेयर मिला था तो , पुरस्कार लेकर पोडियम पर से उन्होंने कहा था कि -मैं तो पैसे लेकर तैयारी से आया था कि अगर नहीं मिला तो मंत के पीछे जाकर संयोजकों को थमा दूंगा थैली। तो हमारे पुरस्कारों की तो ये औकात है। हर आदमी को पता है कि हिंदुस्तान में बड़े से बड़ा ओहदा और बड़ी से बड़ी नौकरी कैसे मिल सकती है। पुरस्कार इसी कड़ी में है...वो कैसे भी मिल जाते हैं...मेरे सात के कई पत्रकार हैं...उनके घर में भांति भांति के सम्मान और ट्रॉफियां रखी हुईं हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा क्या किया है कि उन्हें इनामों से नवाज़ा गया है -उन्हीं से पूछ लीजिए -तो बता न पाएं। खुद मुझे दो बार ऑफर हो चुके हैं अवॉर्डस ...लेकिन ऐसे कि जिनका किसी ने नाम तक न सुना हो-या फिर ऐसे कि जिसमें पुरस्कारलेने के बाद आपके इस्तेमाल की संभावनाएं हों। मैंने आयोजकों से दोनों बार पूछा कि -मैंने ऐसा किया क्या है ? तो उनका भी कहना सुन लीजिए-अरे साहब , बड़े लोग विनम्र होते हैं ..ये आपका बड़प्पन है कि आप खुद को कुछ नहीं मानते।
(3)मूल किताब को ऑस्कर क्यों नहीं मिला, ऐक्टर्स को क्यों नहीं मिला--
इसलिए कि फिल्म मूल किताब पर नहीं बनी...उस पर आधारित स्क्रिप्ट पर बनी ...किताब को विकास स्वरूप दो साल पहले 10 करोड़ रुपये में बेच चुके हैं। इसलिए अब अगर डैनी बोयल उन्हें अपने साथ हर समारोह में रखते हैं , तो ये उनका बड़प्पन है। विकास की किताब की चर्चा तो साहब आपने खुद अपने देश में नहीं की। उनकी प्रतिभा की कद्र तो आपके बॉलीवुड ने खुद नहीं की। वो मुंबई गये -कई फिल्मकारों से मिले -सबने दरवाज़े बंद कर लिए ...क्योंकि उनकी निगाह में ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बेकार होती। और वो फिल्म जब अंग्रेज़ों ने बना ली और तहलका मचा दिया तो लोगों को मिर्ची लग रही है। अब जया बच्चन और अमिताभ बच्चन कहते हैं कि मीडिया को स्लमडॉग की सफलता को इतनी हवा नहीं देनी चाहिए, क्योंकि ये एक विदेशी फिल्म है। अच्छा , तो जया जी आपको बच्चों की फिल्मों के बारे में बात करें हम ? उन फिल्मों के बारे मे जिनमे दुनिया भर के लटके झटके होते हैं और कहानी ढ़ूंढने पर भी नहीं मिलती..ये वही फिल्में हैं जिनके चलते आपने और आपके परिवार ने हिंदुस्तानी पुरस्कारों पर कब्ज़ा कर रखा है। जया जी -आपकी बहू को पद्मश्री मिला है इस साल का। लेकिन इस साल तो उन्होंने सिर्फ एक ही फिल्म की। जोधा अकबर। और उस फिल्म में अभिनय की तारीफ तो आजतक आपके ही लोगों ने नहीं की। विशुद्ध मसाले से भरपूर इस फिल्म में ऐश्वर्या ने क्या किया था ऐसा कि राष्ट्रपति भवन से रुक्का आ गया। खबर तो ये भी है कि भाई अमर सिंह ने चाबी घुमाई थी-ताज़ा ताज़ा समर्थन दिया था केंद्र को-इसलिए एक अदना सा पुरस्कार तो बांएं हाथ का खेल था। दूसरी बात- स्लमडॉग को ऐक्टिंग के किसी वर्ग में नॉमिनेट किया ही नहीं गया था। ये जान लें कि केंद्रीय रोल किसी का था ही नहीं ।
(आगे और है)

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2 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत खरी बात कही आपने...। शुक्रिया।

रात का अंत said...

इस बात के इतर...मुझे लगता है कि स्लमडॉग के उन बच्चों की सुध लेने वाला आज भी कोई नहीं जैसा वो इस फिल्म में दिखे वैसे ही आज भी है आज भी उन्हे कोई नहीं जानता पुलिसवाले आज भी उन्हे एयरपोर्ट के सपाट पट्टी पर खेलने से रोकते हैं..वही सपाट पट्टी जो बॉयलउ साहब की भावना की तरह हमारे मानस पटल को भी इंगित करता है...उन बच्चों से मेरी बात हुई थी कह रहे थे डॉयरेक्टर अंकल ने वादा किया था वो लौटेंगे फिर फिल्म बनाएंगे हां...शायद एक और ऑस्कर की चाहत उन्हे खींच लाए