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एक 'मुस्कान' की कहानी

अगर इस कहानी को दुनिया के किसी भी कोने में बैठा शख़्स सुन रहा हो.. तो वो इसका हिस्सा बन जाता है... ये उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में बसे एक गांव की कहानी है। सात साल की मासूम लड़की की कहानी है... कहानी को समझना है... उससे जुड़ी उम्मीदों को समझना है लिहाज़ा ज़रा गहरे चलते हैंउम्र सात साल... नाम है... ख़ैर छोड़िए, नाम जो भी रखा गया हो, उसके साथ के बच्चे तो उसे होठकटवा कह कर ही बुलाते हैं। बिलकुल नन्ही गुड़िया जैसी... आंखों में शरारत और भीतर बचपन समेटे... स्कूल जाती है.. पढ़ती है.. खेलती है.. लेकिन हर वक़्त उसके ऊपर चिपकी होती है ज़िल्लत। होठ जन्म से कटे हैं.. कोई कहता है ग्रहण का प्रकोप है.. कोई कहता है देवी की क्रूर नज़र पड़ी है। वो हंसना चाहती है.. लेकिन उसकी मुस्कराहट पर ताले पड़े हैं। क्लास में पीछे बैठती है, शायद खुद पर शर्म आती है इसलिए..। सब उसे चिढ़ाते हैं कोई उसके साथ नहीं खेलता... लेकिन बच्ची है न.. तो खुद ही गोल गोल चक्कर काटते हुए, उछलते हुए किसी ख्याल पर, मस्त हो जाती है.. फिर अचानक उसे अहसास होता है कि वो अकेली है और खोई खोई आंखों से लुका छिपी खेलते बच्चों में देर तक खुद को ढूंढती रहती है। सात साल की इस बच्ची की दुनिया जन्म से ऐसी ही रही ... जब कभी आईना देखती है... उसे अपनी शक्ल नहीं... डरावने... नुकीले दांतों वाले सवाल दिखाई देते हैं..। बीच बीच में अपने बाबू(पिता) को अपना चेहरा दिखाती है, बड़े इसरार से उनकी तरफ देखती है, और बाबू... वो अपनी तरफ देखते हैं, अपनी जेब बहुत छोटी और फटी दिखाई देती है उन्हें, नहीं जानते कि कभी इस बच्ची के हाथ पीले भी होंगे या नहीं। वो नहीं मानते कि उनकी बेटी कभी मुंहफट आईने से ये लड़ाई जीत सकेगी... या वो कभी शान से मुस्करा भी सकेगी..फिर एक सुबह, गंदी सी दीवार पर चिपका एक उजला इश्तेहार होठकटवा कही जाने वाली इस लड़की को अपने नाम पिंकी जैसा खिला खिला बनने की उम्मीद देता है... पिंकी की आंखों में चमक है.. वो एक बार फिर बाबू के सामने है.. अपने हाथ में बाबू की अंगुलियां लिए हुए कह रही है... चलो, चलो न बाबू..। बाबू के सवाल - बहुत दूर है कैसे जाओगी..? बहुत पैदल चलना पड़ेगा.. तुम्हें डर नहीं लग रहा ? लेकिन पिंकी की एक ही रट है बनारस जाना है। उसे विश्वास था कि उसकी ‘smile’ उसे हमेशा के लिए वापस मिल जाएगी। और ऐसा ही हुआ
कल तक जिस लड़की को सब होठकटवा कह कर बुलाते थे अब वो पिंकी हो गई है.... एक ऑपरेशन ने पिंकी की ज़िंदगी बदल दी है। अब उसकी ‘smile’ को पूरी दुनिया देख रही है... पिंकी की मुस्कान ने भारत को ऑस्कर के स्टेज तक पहुंचा दिया... क्योंकि अपनी मुस्कान को हासिल करने की इस सच्ची कहानी पर बनी डॉक्यूमेंट्री स्माइल पिंकी को दुनिया भर के सिनेमाप्रेमियों के साथ साथ एकेडमी अवार्ड्स के ज्यूरी मेंबर्स ने भी बहुत पसंद किया.. गांव रामपुर दाबाही के लोगों को भी खुशी है कि उनके ही गांव की पिंकी पर बनी डॉक्यूमेंट्री का डंका ऑस्कर में बजा, अब गली गली में अक्सर पिंकी के नाम के नारे सुनाई दे जाते हैं। गांव की हिरोइन पिंकी है तो गांव के हीरो डॉ सुबोध कुमार जिन्होंने पिंकी के क्लेफ्ट लिप्स को ऑपरेशन से ठीक कर दिया।
अब पिंकी से कभी मिलिए... उसे देखिए... शान से शीशा देखती है.. उसकी दुनिया एकदम बदल गई है
पिंकी की मुस्कान पर लगे ताले खुल चुके हैं...पहले बच्चे पिंकी को चिढ़ाते थे लेकिन अब सब उसके साथ खेलते हैं, पहले पिंकी स्कूल में सबसे पीछे बैठती थी लेकिन अब वो सबसे आगे बैठती है, मन लगाकर पढ़ती है। पिंकी को नई मुस्कान के साथ एक नया लक्ष्य मिला है अब उसे डॉक्टर बनना है अपने जैसे तमाम बच्चों का इलाज करना है.. कई और होंठ कटवा बच्चों को पिंकी बनाना है। और हां.. अब वो तन्हा नहीं है.. उसके साथ उसकी मुस्कान है।
हैरत है कि ये कहानी ख़ालिस हिंदुस्तानी है लेकिन ये दिखाई दी एक अमेरिकी फिल्म निर्देशक को.. 39 मिनट में अमेरिकी निर्देशक मेगन मायलन ने बोला कम है.. कहा ज़्यादा है.. गौर से देखें तो पिंकी की मुस्कराहट में हमारे लिए बहुत सारे सबक हैं।
सोचता हूं कि इस कहानी का सबसे अहम किरदार कौन है... पिंकी... डॉ सुबोध.. या फिर मेगन

सिद्धार्थ त्रिपाठी
(सिद्धार्थ यूं तो एक टीवी जर्नलिस्ट हैं पर ख्वामख्नाह अपनी ऊर्जा ज़ाया नहीं करते...वो जो दिन में करते हैं उसे रात में गुनते हैं...और फिर काग़ज़ पर बिखेर देते हैं...लोगों की कही-अनकही, किसी से सुना या फिर अखबार के किसी कोने में छपी एक छोटी सी खबर उन्हें आइडिया दे गई तो समझिए कुछ पक सा गया। तो, जो उन्होंने ताज़ा ताज़ा पकाया है ...वो आपके सामने है।)

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2 comments:

Udan Tashtari said...

यह तो टीम वर्क होता है. सभी की भूमिका अहम है.

Manojtiwari said...

सर जी आप अच्छा लिखतें हैं बस सिर्फ कामकाज के चक्कर में फंस कर अपनी लेखनी को विराम मत देना क्योंकि एक तो लिखना बहुत कम लोग जानते हैं और जो जानते हैं वो काम के बोझ तले दब कर अपनी प्रतिभा का नाश कर बैठते हैं इसलिये please keep continue