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तुम्हारी महक


याद है मुझे
तुम्हारा चपल कदमों से
रसोई से आना और फिर जाना
फूली रोटियों की आग और
वो गरमी फिर कहीं नहीं मिली मुझे
सब्ज़ी, रोटी और दही
सब में थी तुम्हारी महक
और यक़ीन करो
वो अब भी बसी हुई
है मेरे नथुनों में
मेरी जान
तुम्हारे लिए बीत गए होंगे
इस बात को 14 साल
मेरे लिए
तो ये अभी कल की बात है

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2 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

वाह! बड़ा सुन्दर दृश्य चित्रित किया है। एकदम जिन्दगी से लबरेज़……

alok verma said...

...acha laga