यादें भली भी, बुरी भी
कभी जुबान पर मिठास घोलती हैं
घंटों पहले चखी चाशनी सी
तो कभी दर्द के मरोड़ों से
झकझोरती है अनपहचानी सी
कभी महकती है वर्षों पहले संभाले
हुए लिबास की तहों में
बासी खुशबू सी
तो कभी चढ़ जाती हैं
सिर पे खटास सी
ये चिपक भी जाती हैं
हड्डियों से चमड़ी की तरह
तो कभी फिसल जाती हैं
सोये हुए शिशु के हाथ से मनचाहे
खिलौने जैसी
हर रोज़ मैं सोया तो टूटे हुए दांतों
जैसी उम्मीदों को लेके तकिये के नीचे
कि कोई दांतों की परी ले जाये उन्हें
और दे जाये मुझे कुछ
अपनी यादें मिला के
जो उम्र के आखिरी लम्हों में
भी बांध के ले जाउं यादें तेरी
आ दिखा दूं तुझे यादें मेरी
---- अंजू सिंह
(अंजू की लेखनी से कविता बहती है... बचपन और उसके बाद का वक्त उन्हें भुलाये नहीं भूलता। घर की दीवारों पर , खिड़की के अधटूटे शीशे पर, अंडे के खोखले छिलकों पर और दरअसल .... हर उस चीज़ पर ...जो बड़े होते हुए सामने आती है--अंजू की कविताएं अंकित हैं )
देखोगे..यादें मेरी ?
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2 comments:
अंजू जी को पढवाने का आभार.
अरे, अंजू भी कविताएं लिखती है... वो भी इस कदर... शानदार
नई पौध पर नगीने उग आये हैं
खबरी
http://www.deveshkhabri.blogspot.com/
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