मोहन चंद शर्मा पंचतत्व में विलीन हो गये। लेकिन उनकी मौत कई सवाल छोड़ कर गई है। उन पर चर्चा बाद में करेंगे लेकिन अभी ये कि जो पकड़े गए ...उनका क्या होगा। उन पर अदालतों में मुकदमें चलेंगे...पहले छोटी अदालत फिर उससे बड़ी...फिर उससे बड़ी...और फिर सबसे बड़ी। फिर कोई देश का नामी गिरामी वकील ..जिसके लिए रुपया पैसा, शोहरत , ताकत अब कोई नई चीज़ नहीं रही..आगे आएगा और कहेगा मैं लड़ूंगा ये केस। वो अदालतों में साबित करेगा कि सबूत नाकाफी हैं। फिर सात-आठ सालों में फैसला आएगा..जिसमें इस पूरी साज़िश में शामिल लोगों में से ज्यादातर को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया जाएगा। वो फिर घूमेंगे...जामिया या वैसे ही किसी इलाके की बंद गलियों में हादसों की तैयारी करते। अगर एकाध को ज़िम्मेवार मान भी लिया गया तो ज़्यादा से ज़्यादा फांसी की सज़ी होगी। अच्छा...फिर क्या होगा ..फिर सरकार को मुसलमानों के वोट की याद आएगी...लगेगा ..चुनाव सिर पर हैं..फांसी अभी ठीक नहीं ...सो , फांसी पाए आतंकवादी को सुविधा दी जाएगी कि वो राष्ट्पति से माफी की गुहार करे...दो-चार महीने उसमें लग जाएंगे...फिर राष्ट्रपति के दफ्तर में उसकी बारी आते महीने और फिर कई साल लग जाएंगे। इस बीच देश के गृहमंत्री का बयान आएगा कि फांसी दी जाए या नहीं-इस पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए। गृहमंत्री को भी ये सदविचार इसी मौके पर सूझने थे। खैर...फांसी पर कोई फैसला हो पाए..इससे पहले ही कई और धमाके हो जाएंगे...देश उनमें फिर मसरूफ हो जाएगा। तब तक अगला चुनाव आ जाएगा...और दोस्तों....तब..हम सब फिर बेशर्मी ओढ़ लेंगे .... वोट देने और उगाहने खुद सड़कों पर चलेंगे...और अगला -पिछला सब भूल जाएंगे।
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6 comments:
शहीद मोहन चन्द शर्मा जी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!!
very heart touching article and is based on reality.
I believe that such articles could contribute in social awareness.
आतंकवादिओं को फांसी तो एक आसन रास्ता है पर मुश्किल है देश में मोजूद उन नेताओं से निपटना जो सिमी और इडियन मुजाहिदीन नामक आतंकवादी संगठनों को सचरित्र होने का प्रमाणपत्र देते हैं अगर ये सुधर जाएँ तो आतंकवाद से निपटना आसन हो जायगा
मनोज जी, ये नेता नहीं सुधरने वाले। इनकी असली जगह जेल है। नये लोगों को आना होगा, जिम्मेदारी सम्हालने के लिए। पूरा का पूरा बदल डालो।
आप को मालूम है हम जिसे आम भाषा में आम जनता कहतें हैं क्या करती है घटना के बाद बड़ी बड़ी बातें करती है फिर सब अपने अपने घर जातें हैं और लम्बी तान कर सो जातें हैं और जब बदलाव करने का वक़्त आता है मतलब जब चुनाव का वक़्त आता तो छुट्टी का फायदा उठाते हैं पिकनिक मनाने जातें है दोस्तों के घर जातें हैं पर वोट देने नहीं जाते ज्यादातर जो लोग वोट देने जाते हैं उनकी राजनितिक समझ इतनी विकसित नहीं होती सबके लिये नहीं कह रहा हूँ उन लोगों के कह रहा हूँ जो कम पढ़े लिखे हैं वो उन्ही नेताओं को चुनते हैं जो उनका तात्कालिक फायदा करवा सके देशहित की बात ना तो ऐसे नेता सोच सकते और ना ही उनको चुनने वाले लोग परिणाम हमें हर पांच बरस में उन्ही चोरों और डाकुओं में से मंत्री चुनने पड़ते हैं और येही आर बार होता है
देश पर मर मिटने की चाहत रखने वाला हर शख्स इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा जैसी शहादत चाहता होगा ... लेकिन राजनेताओं की काली करतूतों से हर देशभक्त आहत है ।
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