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गॉन आर द डेज़

स्कूल जाने की जब तक उम्र होती है .... स्कूल जाना कड़वी दवा लगता है...लेकिन बाद में वो दिन खूब याद आते हैं। मन कहता है कि ज़िंदगी एक टेप होती है और हम उसे रिवाइंड कर लेते। लेकिन फिर...ज़िंदगी यही है ... जो बीत गया..वो वापस नहीं आ सकता। अगर कोई मुझसे पूछे कि ज़िंदगी में कौन सी चीज़ है जो मैं चालीस की उम्र में भी मिस करता हूं...मैं कहूंगा ...मेरे स्कूल के दिनों के फोटोग्राफ...हर क्लास का ग्रुप फोटो था...मेरी मां ने बहुत सहेज़ कर रखा था...लेकिन तीन दशकों से संभाल कर रखे गए फोटोग्राफ जब दो बरस पहले सीलन के शिकार हो गए तो सच मानिए ...कलेजा मुंह को आ गया। मुझे याद है हर साल मेरी मां बरसात के पहले और फिर उसके बाद खूबसूरत प्रेमों में सजी ढेर सारी फोटो घर के आंगन में खटिया पर बिछा देती थीं...ताकि धूप लगने से वो अगले साल तक सुरक्षित रहें। इनमें इलाहाबाद के ब्वॉयजॉ हाइस्कूल की वो तस्वीर भी थी जो औपचारिक शिक्षा की शुरुआती क्लास होती है। खाकी निकर और वर्दी पहन कर तीसरी लाइन में बुक्का जैसा खड़ा था मैं। शायद 1973 या 1974 की बात थी। लंबे चेहरे वाली खूबसूरत सी टीचर थीं..जो आज न जाने कहां होंगी। खूबसूरत फ्रेम वाला चश्मा उन्हें और खूबसूरत बनाता था। अगली क्लास में एक मोटी सी टीचर थीं जिनका नाम याद नहीं। लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ी के अक्षरों के जो उच्चारण उस वक्त बताये थे ..आज तक नहीं भूला हूं। इसी स्कूल के लॉन में एक बार इमली के पेड़ की शाखाओं से लटक कर झूलने की कोशिश में गिर पड़ा था..बेहोश हो गया था। खैर..उन फ्रेमों में एक में मैं खुद को देखता हूं...एक फौजी के पहनावे में..शायद 1970 है ये...एक में टेबल पर पेट के बल लेटा हूं और दोनों हाथों से उठने की कोशिश कर रहा हूं..शायद 7 या 8 महीने की उम्र में खिंची थी। लंबे बालों वाला मैं। एक तस्वीर कक्षा 4 की भी है जो पीलीभीत के मेरे नये स्कूल की पहली फोटो है। इसमें एक टीचर हैं ..गीता आंटी...हर स्कूल में टीचर को कुछ न कुछ कह कर बुलाने की प्रथा है...मेरे बच्चे मैम कहते हैं...मेरे उस स्कूल में आंटी कहा जाता था। तो वो गीता आंटी थीं। सिर्फ यही एक ऐसी टीचर हैं जो आज तक मुझे याद आती हैं..आज भी इन्हें खोज रहा हूं..पीलीभीत में अपने संवाददाताओं से कहा--किसी भी तरह उन्हें खोजे...लेकिन अभी तक कुछ पता नहीं चला। वो मुझे बहुत मानती थीं..हर शनिवार को जब छुट्टी 12 बजे ही हो जाती थी...वो एक घंटे तक हम सबसे फिल्मी गाने सुनतीं। उनकी फरमाइश हर हफ्ते मुझसे एक ही गाने की होती...चुरा लिया है तुमने जो दिल को...मैं गाता..और सब सुनते। ये गाना आज भी मेरा फेवरिट है लेकिन गीता आंटी कहीं नहीं हैं..आज इनमें से एक भी फोटो मेरे पास नहीं बचीं....इसीलिए मुझे लगता है कि अब पीढ़ियां लापरवाह होती जा रही हैं..जो तस्वीरें तीन दशकों से मेरी मां ने संभाल कर रखी थीं...हमने खो दीं...

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2 comments:

Udan Tashtari said...

कितनी यादें ताजी हो गईं मिलत जुलती......

umesh chaturvedi said...

राकेश जी,
आपने बोरा-चट्टी वाले अपने स्कूल और उसमें हमें पढ़ाने वाले कई पंडीज्जी (हम ना तो आंटी ना ही मैडम या सर बोलते थे। प्राइमरी और मिडिल स्कूल के अपने अध्यापक को हम पंडितजी बोलते थे जो पंडिज्जी हो गया था।)लोगों की याद हो आई। अपनी अंग्रेजी आज भी कमजोर है। लेकिन हिंदी, गणित और सामाजिक विज्ञान जिन्होंने पढ़ाया, उसकी नीव मजबूत की, वे गौरीशंकर पांडे मुझे याद आ रहे हैं। उनकी याद इसलिए भी ज्यादा आ रही है- क्योंकि अब वे इस नश्वर संसार में नहीं हैं। उनकी एक-एक सीख आजतक नहीं भूल पाया हूं। मिडिल स्कूल के ऑलराउंडर पंडिज्जी सीताराम सिंह और संस्कृत के पंडितजी गोपाल पांडे भी याद आ रहे हैं। अब वे भी हमारे बीच नहीं रहे। बहुत भावुक हो रहा हूं राकेश जी,इसके लिए जिम्मेदार आप ही हैं। धन्यवाद