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कहानी - थोड़ी पुरानी

बारहवीं-तेरहवीं सदी में ईरान में एक मशहूर सूफी संत हुए थे - मुहम्मद फरीदुद्दीन अत्तार। उन्होंने अपनी किताब मन्निकुत्तैर में साधक के मार्ग की कठिनाइयों और चरम लक्ष्य तक पहुंचने का वर्णन बडे़ ही रोचक ढंग से किया है। इसके लिए उन्होंने एक दिलचस्प रूपक का सहारा लिया। किताब की शुरुआत संसार भर के पक्षियों की कॉन्फ्रंस बुलाने और उसमें हुदहुद के नेता चुने जाने के वर्णन से होती है। हुदहुद को आध्यात्मिक जगत के रहस्यों का पता है। वह पक्षियों को बतलाता है कि उसका भी एक राजा है जिसका नाम सीमुर्ग है। लेकिन हुदहुद अकेले उसके पास तक जाने का साहस नहीं कर पाता। यदि कॉन्फ्रंस में उपस्थित सभी पक्षी साथ चलने को तैयार हों तो वह उन्हें ले कर जा सकता है। इसके बाद हुदहुद ने बहुत सी कहानियां कही हैं।
उन कहानियों को सुन कर बाकी चिड़ियों के हृदय में भी उस प्रियतम (सीमुर्ग) से मिलने की तीव्र आकांक्षा उत्पन्न होती है और वे हुदहुद के नेतृत्व में अपनी यात्रा पर अग्रसर होती हैं। हुदहुद रास्ते में साथी पक्षियों की जिज्ञासाओं का जवाब देता है। एक पक्षी के पूछने पर बतलाता है कि सीमुर्ग तक पहुंचने के लिए किस तरह घने जंगलों से भरी हुई सात घाटियां हैं। उन सात घाटियों के भी नाम हुदहुद ने बतलाए- पहली घाटी खोज की है, दूसरी प्रेम की, तीसरी ज्ञान की, चौथी नि:संगता की, पांचवीं एकत्व की, छठी भावाविष्ठावस्था (आनंद) की और सातवीं फना (मृत्यु) की। अत्तार ने फारसी में लगभग सवा लाख पद लिखे हैं। इनके कहने का ढंग अत्यंत ही सरल था, लेकिन कहीं-कहीं उनमें विरोधाभासी शैली अपनाने की प्रवृत्ति भी दीखती है। जैसे अत्तार अपनी मसनवी में लिखते हैं, ऐ मनुष्य, यह संसार तुम से ही परिपूर्ण है, लेकिन तुम संसार में नहीं हो। तुम्हारा मौन तुम्हारी वाणी से है।
अत्तार भावाविष्ठावस्था में कहते हैं, आखिरकार बेहद जद्दोजहद (प्रयत्नों) के बाद मैंने विजय पा ली है, मेरा अहंकार मेरी आंखों से आंसू बन कर बह गया है, मुझ खोजी को अब आनंद ही आनंद है। मेरे दिल का चिराग रोशन हो गया है, हर चेहरे में मुझे अब उसकी (ईश्वर) छवि दिखाई पड़ती है। मैं अपने ही भीतर प्रेम से जल रहा हूं, मुझे प्रेम में ही दफना दो। मैं एक ही साथ मोती भी हूं और उसका विक्रेता भी। अत्तार इत्रफरोश थे। एक दिन वे अपनी दुकान पर बैठे थे कि एक सूफी दरवेश आया।
अत्तार को लगा जैसे उसने भिक्षा पाने के लिए दरवेश का स्वांग बना रखा है, इसलिए उसे आगे बढ़ने के लिए कह दिया। तब दरवेश ने अपने फटे वस्त्रों को दिखलाते हुए कहा, संसार में केवल वही उसकी संपत्ति है। उसके लिए वहां से जाना अथवा इस संसार से कूच कर जाना बिल्कुल मुश्किल नहीं है। लेकिन वह अत्तार के लिए दुखी है कि वह अपनी इतनी संपत्ति को कैसे छोड़कर जाएगा।
अत्तार की जैसे आंख खुल गई, उसने उसी समय अपनी सारी धन- संपत्ति त्याग कर सूफी हो गए। अत्तार की मृत्यु की कहानी भी बड़ी विचित्र है। चंगेज खां ने फारस पर चढ़ाई की। अत्तार एक सैनिक के हाथ पड़ गए। वह उन्हें मारने ही जा रहा था कि एक अन्य सैनिक को उन पर दया आ गई। उसने काफी दव्य देकर अत्तार को खरीदना चाहा। लेकिन अत्तार ने अपने मालिक सिपाही को उतना मूल्य लेने से मना कर दिया और कहा कि उसे और अधिक कीमत मिल सकती है। इसके कुछ समय बाद एक दूसरे सैनिक ने उन्हें खरीदना चाहा। उसने देखा कि अत्तार बूढ़ा है, अतएव उनका मूल्य एक थैली घास से अधिक नहीं होगा। अत्तार ने उस सैनिक से जिसने उन्हें पकड़ रखा था, कहा कि वह उसे बेच दे क्योंकि वही उनकी पूरी कीमत है। इस बात से वह मालिक सैनिक इतना नाराज हुआ कि उसने ही अत्तार को मार डाला।

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3 comments:

adil farsi said...

बहुत बढिया...बधाई

P.N. Subramanian said...

सुंदर कहानी. कहीं अतार से ही अत्तर (इत्र) तो नहीं बना?
http://mallar.wordpress.com

L N Srinivasakrishnan said...

बहुत दिलचस्प कहानी बताने के लिये धन्यवाद । कहते हैं कि मौलाना रूमी (दुनियां के मशहूरतरीन सूफ़ी शेख़) अतार को बहुत ऊँचे दरजे का ज्ञानी मानते थे। उन्होंने अतार के बारे में यह कहा -

हफ़्त शहर ए इश्क़ रा अतार गश्त
मा हिनोज़ अन्दर ख़म ए यक कूचे यीम

(अर्थात् प्रेम के सातों शहरों से गुज़र चहुके हैं अतार
हम तो अब भी एक गली के मोड़ मे हैं)