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Q & A के निहितार्थ




विकास स्वरूप एक राजनयिक हैं, साहितयिक अभिरुचि के हैं...और सबसे बड़ी बात इतने बड़े पद पर होते हुए भी ज़मीन से जुड़े हैं। विकास , हाल ही में चर्चा में इसलिए आए हैं क्योंकि तीन बरस पहले लिखी गई उनकी पहली उपन्यास पर बनी एक फिल्म ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया है। मैंने वो फिल्म देखी और विकास की समझदारी की तारीफ किए बगैर नहीं रह सका। कहानी का ताना बाना जिस माहौल के इर्द गिर्द तैयार किया गया है......विकास ने लिखने से पहले उसे अच्छी तरह समझने की कोशिश भी की। विकास की तरह बहुत से अफसर विदेश सेवा में मजे लेकर जीते हैं..और दुनिया भर में घूमते रहते हैं। लेकिन विकास के भीतर कोई कीड़ा था , जो उन्हें चैन नहीं लेने दे रहा था। जब वो दिल्ली में थे, तब उन्होंने एक सरकारी योजना की कहानी पढ़ी थी। इस योजना के तहत दिल्ली के एक स्लम इलाके में एक कंप्यूटर रख दिया गया था। कुछ दिनों बाद गौर किया गया कि स्लम के बच्चे कंप्यूटर का इस्तेमाल सीखने लगे। किसी अखबार में पढ़ी गई उस छोटी सी खबर ने विकास को कहानी का एक प्लॉट दे दिया। उनकी उपन्यास -Q & A स्लम में पले बढ़े एक ऐसे ही बच्चे की कहानी है जो एक क्विज़ प्रतियोगिता में जाकर सबसे बड़ा ईनाम जीत लेता है। हर सवाल का जवाब उसे अपनी ज़िंदगी में भोगे हुए यथार्थ से मिलता है। वो अनुभव जो उसे 15-16 साल तक की उम्र में मिले हैं...हर सवाल का जवाब किसी न किसी घटना में छिपा कोई अनुभव , कोई शब्द या फिर कोई नाम होता है...जिसे वो बुद्धिमानी से जोड़ता चलता है....ह़ॉट सीट पर बैठ कर उसमें इतनी चालाकी भी आ जाती है कि वो, वक़्त की नज़ाकत भांप कर सवाल पूछने वाले को भी गच्चा दे जाता है।


फिल्म का हीरो-वो बच्चा, विकास स्वरूप के उस यकीन का मानवीय रूप है-जिसके तहत वो मानते हैं कि हममें से हरेक व्यक्ति बुद्धिमान है, जिसको पढ़ाई लिखाई का मौका मिला , वो अफसर बन गया ...या फिर ज़िंदगी से लड़ने के लिए ज़रूरी चालाकियां सीख गया। जिसे मौका नहीं मिला ....उसने 'बहादुर' बनकर मालिकों की चाकरी में पूरी ज़िंदगी बिता दी। लेकिन विकास की कहानी का हीरो एक पॉज़िटिव मेसेज भी देता है....कि स्लम में रहने वाला भी महलों के सपने देखता है...और उसे मुमकिन भी बना सकता है। हम पढ़े लिखे हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि हम ही ज्ञानी हैं....ज्ञान की कोंपलें उनमें भी फूटती हैं जो सड़कों पर कूड़ा बीनते रोज़ दिखाई दे जाते हैं....उनमें भी जिन्होंने अपना बचपन हादसों और डर से भरे लम्हों के बीच बिताया है।


कहने को लोग कहेंगे कि हिंदी में लिखने वालों की कद्र नहीं है। लेकिन मानना होगा कि अंग्रेजी में लिखने वाले विकास स्वरूप की आत्मा में हिंदी पूरी तरह रची बसी हुई है....ये भी कि उनसे मिलने के बाद शायद ही कोई कहे कि वो हिंदी के लेखक नहीं हैं। Q & A लिखी भले ही अंग्रेज़ी में लिखी गई हो-उसका ताना बाना विशुद्ध रूप से एक हिंदी में सोचने वाले का ही बुना है।

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1 comments:

siddharth said...

मेरे लिए भी विकास स्वरूप के उपन्यास क्यू एंड ए को स्लमडॉग की शक्ल में देखना बहुत सुखद अनुभव रहा... रंग दे बसंती के बाद हाल फिलहाल में किरदारों का ऐसा तानाबाना देखने को नहीं मिला जिसमें आप बहुत सहजता से मौजूदा और बीते हुए वक़्त के बीच सफ़र करते रहते हैं... और एक संजीदा कहानी बयां करने की कोशिश करते हैं... इस फिल्म के लिए hats off to vikas swaroop जिन्होंने इतनी ताज़ातरीन कहानी लिखी