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वो लड़की



वो वैसी ही थी
बिल्कुल छोटी बच्चियों जैसी
अपने में मगन..फ्रॉक पहने, दोनों चोटियां,
जिनके अंतिम हिस्से पर
गुलाबी रिब्बन बंधे हों.. इधर-उधर लहराती हुई,
दबंग सी, धूल मिट्टी में खेलती हुई...अकेली।
बस अपने बालू के घर बनाती और बिगाड़ती हुई...
और कभी-कभी
खेलते-खेलते न जाने कब सो जाने वाली
इस तरह अपने ही भीतर के झंझावातों से
ताकत बटोरती हुई
और ज़िंदगी में आगे बढ़ जाती हुई।
वो वैसी ही थी


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