'ये समझ लीजिए कि ईशान मेरा भाई नहीं .... दूसरा बच्चा है..हमने उसे बच्चे की तरह पाला है' कहते-कहते 40 बरस के अमित गुप्ता का गला रुंध जाता है। ईशान आईटी प्रोफेशनल हैं और 4 बरस पहले नोएडा में एक सड़क दुर्घटना में कोमा में चले गए थे, ऐसे कि डेढ़ बरस तक वापस नही आए। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था, लेकिन अमित और उनके परिवार की उम्मीदों ने नहीं। ईशान के शरीर में सांसें तो थीं, लेकिन उनका दिमाग साथ नहीं दे रहा था। पूरे दो साल अमित गुप्ता , उनकी पत्नी और उनकी मां ने ईशान को कुछ ऐसे पाला जैसे कोई नवजात शिशु। अपने भाई को फिर से चलता देखने की ललक ने अमित और उनकी पत्नी में इतनी ऊर्जा भर दी थी कि साल भर की उनकी बच्ची की देखरेख भी इसके आड़े नहीं आई। अमित बताते हैं कि छोटा भाई ईशान कोमा से लौटेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं थी, लेकिन उसके ईलाज के लिए अमित और उनके परिवार ने कानपुर का घर बेच दिया।
होली और दीवाली जैसे त्योहार आते थे और कब चले जाते थे , उनके परिवार को पता भी नहीं चल पाया। डेढ़ बरस बाद जब ईशान कोमा से वापस लौटे, तो परिवार की जान में जैसे जान आई। लेकिन अभी इम्तिहान जैसे खत्म नहीं हुए थे। ईशान को खड़ा करना था जिसके लिए अमित , उनकी पत्नी और उनकी मां ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। अमित ईशान को अपने आगे कर पीछे से एक बेल्ट में अपनी कमर से बांध देते और फिर ईशान को खड़ा रखने की कोशिश करते थे। बकौल अमित ये मुहिम एक सेकेंड के टारगेट से शुरू हुई। यानी पहले दिन एक सेकेंड के लिए ईशान को खड़ा किया फिर दूसरे दिन दो सेकेंड और तीसरे दिन तीन सेकेंड। इस तरह हर दिन वो एक सेकेंड बढ़ाते गए और टारगेट पूरा करते गए। एक-एक सेकेंड ईशान की ज़िंदगी के खाते में जुड़ते गए और अब किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह ईशान रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वापस लौट आए हैं....ज़िंदगी के वो डेढ़ साल उन्हें याद नहीं हैं...और वो याद करना भी नहीं चाहते ... एमबीए की पढ़ाई उन्हें मसरूफ़ रखती है, लेकिन उनका चेहरा अगर आप देखें तो आप को उनके भाई, उनकी भाभी और उनकी मां की तस्वीर दिख जाएगी..क्योंकि मैंने देखे हैं उस चेहरे में ये अक्स।
ईशान अमित के लिए इकलौते पड़ाव नहीं थे... मुश्किलों ने अमित को जब-जब अकेले में धरना चाहा, वो हमेशा गच्चा दे गए। न सिर्फ गच्चा दे गए...बल्कि उस लड़ाई में अव्वल होकर बाहर भी निकले। ठीक उसी तरह जैसे यूपी बोर्ड की भयानक मानी जाने वाली दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में मेरिट में उन्हें जगह मिली थी। इंटरमीडिएट के नतीजे आ गए थे और घर-बाहर , पड़ोसियों और रिश्तेदारों में मां-बाप की नाक और ऊंची हो गई थी। रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिलने से पिता की छाती और चौड़ी हुई लेकिन इसके कुछ ही दिनों के भीतर जैसे परिवार की खुशियों को ग्रहण लग गया। जिस दिन उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज मे एडमिशन के लिए जाना था उसके एक दिन पहले पिता ने आंखें मूंद लीं। जब इंजीनियरिंग में एडमिशन मिलना प्रतिभा की सबसे बड़ी मिसाल मानी जाती थी, उन्हें देश के अच्छे कॉलेजों में से एक में जगह मिली, लेकिन पिता के यकायक जाने से टूटे आर्थिक मुश्किलों के पहाड़ ने उन्हें रुड़की से अलग रखा। हार कर अमित ने बीएससी की और ज़िंदगी के खेल में आगे बढ़ लिए। ज़िंदगी रोड़े अटकाती रही, और वो लोहा बनते गए।
इसीलिए अगर अपने बच्चों को बताना हो कि असली चैंपियन कैसे होते है , तो आप नोएडा के सेक्टर 25 में अमित गुप्ता के घर ज़रूर जाएं।
रा.त्रि
0 comments:
Post a Comment