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तुम्हारे लिए


भीगी आंखों से पढ़
उस ख़त की एक एक इबारत
जल उठा एक छोटा सा
दीपक
मेरे एकदम भीतर
वेदों की पवित्र रिचाओं
सी तुम प्रकट हुईं और गर्म होठों
से छू लिया मेरा माथा

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3 comments:

Vidyut Prakash Maurya said...

कृपया अपने ब्लाग को www.blogvani.com पर जाकर रजिस्टर करें..यह एग्रीगेटर है जो आपके ब्लाग को प्रचारित करता है।

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी रचना है. कम शब्दों में संपूर्ण भाव.

नियमित लिखें, शुभकामनाऐं.

alok verma said...

...rakesh sir!!!...pata nahen maen aapko yaad hu na yaad hun....per bloging ke dermian jab aap mele to acha laga....aapaka aasirvaad he hae ke hyderabad ke vanvaas se nejat mele....kabhe aaunga...mere khusean aapke lea bhe methas banna chahte haen!!!!!!