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आरुषि होने के मायने



आरुषि और हेमराज की हत्या में लसी-बंधीं कई गुत्थियां हैं... कुछ सुलझ गई हैं... कुछ सुलझ जाएंगीं... कुछ और उलझेंगी... इस मर्डर मिस्ट्री को जो जितना बेच सकता था, बेचा गया... जो इससे जितना बटोर सकता था, बटोर गया... कुछ दिनों में ये खबर पुरानी हो जाएगी... आरुषि मर्डर के अपडेट ब्रेकिंग से टिकर तक का सफर तय करेंगे और फिर धीरे धीरे गायब हो जाएंगे... यही सही वक्त है जब आप आरुषि को समझ जाएं... उसकी मौत की मिस्ट्री की फिर जांच करें... आरुषि की मौत सिर्फ एक लड़की की मौत नहीं है... हेमराज की मौत, एक नौकर की मालिक से दगाबाजी और उसके अंजाम तक ही नहीं सिमटती... इसके बाद बहुत कुछ है जो सोचा जाना बेहद ज़रूरी हो गया है... आरुषि होने के माइने सिर्फ इतने नहीं हैं... अगर सिर्फ ये होता तो इतना हंगामा न होता... इतनी हायतौबा न होती... आरुषि का मर्डर बड़ी खबर नहीं थी... आरुषि की मौत का खुलासा ज्यादा दर्दनाक है... इसलिए नहीं िक एक बाप ने अपनी लाड़ली इकलौती लड़की को मार दिया... इसलिये भी नहीं कि उसके पीछे एक बड़ी साजिश रची गई... बल्कि ज्यादा डरावने वो हालात हैं जो आरुषि जैसे हादसे की वजह बने... भगवान न करे पर ज़रा उस परिवार से... आरुषि से जुड़कर सोचिये... अपने मां बाप की इकलौती लाड़ली लड़की... नाना नीनी की इकलौती धेवती... चाचा ताऊ की इकलौती भतीजी... कितना लाड़, कितना प्यार बरसता होगा उस पर... पर कितनी अकेली हो गई होगी आरुषी हर जगह से इकलौती होकर... १४ साल की उम्र... उम्र का वो दौर जब हर चीज़ बदलती दिखती है... हार्मोन बदलते हैं... रूप रंग सब बदल जाता है... इस बदलाव में आरुषि को ज़रूरत होगी किसी अपने की... कुछ बताने के लिए... कुछ पूछने के लिए... आरुषि अपने आसपास देखती होगी... नाना... नानी... चाचा... ताऊ... और अगर वक्त मिल गया तो मम्मी, पापा... उसे उसकी उम्र का कोई नहीं दिखता होगा... अपने पास कोई नहीं दिखता होगा... वो बदलाव से गुजर रही थी... इसी बदलाव ने उसे बहका दिया... हेमराज... घर का नौकर... चुलबुली आरुषि को दिन भर परेशान देखता होगा... उसका हाल पूछता होगा... दोनों नज़दीक आ गए... उन्हें कोई रोकने वाला नहीं था... कोई और हाथ नहीं था जो आरुषि को थाम ले... वो बह गई... उम्र के दौर में बदलाव की बयार में... उधर डॉक्टर तलवार... कौन नहीं चाहता अपने बच्चे को वक्त देना... इकलौती जान की जी जान से परवरिश करना... पर आज जिंदगी का जितना वजनदार लबादा हमने ओढ लिया है... उसके बाद वक्त कहां बचता है... न मां के पास... न बाप के पास... पर क्या बीती होगी उस पर जब उसने अपनी बच्ची को बहकते हुए अपनी आंखों के सामने देखा होगा... समझाने की भी कोशिश की होगी... तो अपनी गलतियंा याद आ गई होंगी... वो भी भटक गया था... और उसी बात को लेकर उसकी बीबी से नहीं बन रही थी... कितना बेबस हो गये होगा... कितना मजबूर हो गया होगा... कैसे समझाये... अपना गिरेबां बार बार कोसता होगा... कोई रास्ता नहीं दिखा... कुछ नहीं सूझा... और अपनी फूल सी बच्ची का कत्ल कर बैठा... न डॉक्टर तलवार माफी के काबिल है और न बाकी वो सभी जो इस मिस्ट्री से जुड़े हैं... पर क्या सिर्फ आरुषि की मिस्ट्री सुलझा भर लेने से काम चल जाएगा... क्या ये दोहरी मौत और एक हंसते खेलते परिवार की बर्बादी ये सोचने के लिए काफी नहीं है िक हम आप कितना वक्त दे पा रहे हैं अपने लाड़लों को... शायद यही सही वक्त है... आज आरुषि का जन्मदिन है और यही उसके लिए सबसे बढ़िया तोहफा होगा...

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9811852336

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5 comments:

Anonymous said...

no where it has been proved that the child had sexual relations with the servant .
i think you should be more sentive in writing towards a child who was murdered and is no more there to defend herself.

Anonymous said...

no where it has been proved that the child had sexual relations with the servant .
i think you should be more sentive in writing towards a child who was murdered and is no more there to defend herself.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मेरा मत रचना जी के साथ है। हम एक ओर तो पुलिस और चैनलों को गाली दे रहे हैं, दूसरी ओर हम खुद क्या कर रहे हैं? वही जो उन्हों ने अपनी असफलता और गैरप्रोफेशनलिज्म को छुपा कर जान छुड़ाने और स्टोरी बेचने के लिए किया फोकट में कर रहे हैं। हम क्या स्त्रित्व और उस के सम्मान का कत्ल नहीं कर रहे?

सचिन अग्रवाल said...

रेस सांसो की ...रेस धड़कन की

आरुषि जब जिन््दा थी... उसके मां बाप ने, मीडिया ने पुलिस ने और हमने किसी ने उसे व््कत नहीं दिया ...उसकी उम््र को उसके दौर को उसके सवालों को..उसकी भावनाओं को हमारा वकत्् चाहिए था...हम नहीं दे पाए..जब उसे मार दिए गया ..हमे सदमा लगा ...समय लेकिन फिर भी हमारे पास नहीं था...तलवार दम््पति को उसे जलाने की ...पुलिस को वर््क आउट की और मीडिया को खुलासे की जल््दी थी....इस जल््दबाजी ने न तो उसकी जिन््दगी को वक््त दिया न मौत को ...हमें इतनी जल््दी क््यों है ...हर चीज इतनी जल््दी तो नहीं हो सकती...वक््त तो अपनी स््पीड से अपने हिसाब से अपने अंदाज में चलेगा...जल््दी और हड़बड़ी में हम हैं...हम वक््त के साथ नहीं जल््दी के साथ कदम ्मिलाना चाहते हैं...हड़बड़ी में भूल, गलती और ब््लंडर््स तो होंते ही हैं...पुलिस से भी हुए...तलवार दम््पती से भी हुए..मीडिया से भी हुए...और आरुषि से भी हुए होंगे...जल््दी में जो गलतियों हमसे हो जाती हैं उन््हे हम याद रखें और इसीलिए जल्दी में दूसरों हुए गलतियों को माफ करें....ये सबक डॉ तलवार ने तो नहीं सीखा....लेकिन हम जरूर सीख लें...जल््दी के साथ कदमताल कृरने की हमारी जिद में सच कितनी देर के बाद हांफने लगेगा पता नहीं....अगर सच की सांस की फूल गई तो हमारी जल््दी तो हमें इतना वक््त भी नहीं देगी कि लौटकर उसके हालचाल पूछ सकें..इस जल््दी में जो और जैसा हमारे साथ चल पाएगा वहीं हमारा सच होगा...और इस सच को भी खुद को सच साबित करनी की उतनी जल््दी होगी...

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

ये पोस््ट मैंने जिस दिन लिखी थी, आरुषी का जन््मदिन था... और पुलिस का दावा और उनकी खोज का आखिरी नतीजा था कि उस १४ साल की मासूम लड़की के ५२ साल के हेमराज से अवैध संबंध थे... ये जानकर बड़ा अजीब लगा और उन सोचने लगा कि वो कैसे काले हालात होंगे जब ऐसा हुआ... लेकिन सच कहूं तो मुझे इस निकम््मी पुलिस के इस दावे में भी कोई हकीकत नज़र नहीं आती... जो भी हो... पर आरुषि जैसे हत््याकांड हमारे माथे पर कालिख हैं...

देवेश वशिष््ठ 'खबरी'
981185236