लोकसभा और राज्यसभा की गद्देदार सीटों पर बैठने वाले मर्दों को 20 साल बाद अब बुरा लग रहा है। 20 साल पहले जब मंडल कमीशन के लिए इन्हीं लोगों ने ' अलख ' जगाई थी..तब सोचा नहीं था कि एक दिन उस आंच में खुद भी झुलसना पड़ सकता है। अब मुद्दा संसद और विधानसभा में औरतों को आरक्षण देने का है। 12 साल में चौथी बार पेश हुआ तो बिल की ऐसी की तैसी कर दी गई। बाहुबलियों की एक पार्टी ने बिल को कई टुकड़ों में बांट कर उन्हें हवा में ऐसे उछाल दिया..मानों कह रहे हों कि ...जोड़ के दिखाओ तो जानें.....। ये वही लोग हैं जिन्होंने दो दशक पहले नौकरियों में आरक्षण की मांग कर राजनीति में अपनी पैठ बनाई थी...इनमें वो चेहरे भी हैं जो मंडल की आग में बच्चों को झुलसते देखते रहे...मुंह पर ताला लगा लिया और बाट जोहने लगे राज्यसभा सीटों के ईनाम की। आज वही लोग लड़ रहे हैं....कहते हैं ...जी, महिलाओं के लिए संसद और विधानसभा में आरक्षण नहीं होना चाहिए। लेकिन क्यों...नौकरियों में आरक्षण ज़रूरी है लेकिन संसद में नहीं ? क्षेत्रीय पार्टियां ज्यादा परेशान हैं। उनका शक इस बात पर है कि अगर मौजूदा विधेयक पास हो गया तो उनको पास जीत कर आने लायक महिलाएं नहीं होंगी। इसलिए आरक्षण के भीतर एक आरक्षण हो और 33 फीसदी में भी उन जातियों को आरक्षण दिया जाए जो पिछड़ी हैं। सवाल सिर्फ यही है कि आरक्षण होते हुए भी नौकरियों में सही उम्मीदवार क्यों नहीं मिलते....या आरक्षण समर्थक पार्टियों को डर क्यों है कि चुनाव जीतने लायक उम्मीदवार उनके पास नहीं...जवाब है क्योंकि उसके लिए कभी कोई कोशिश की ही नहीं गई। 61 साल हो गए आज़ादी को...प्राथमिक शिक्षा पर न जाने कितने पैसे खर्त हो गए...लेकिन हल जोत रहे किसान के बच्चे को क्लास तक लाने की आज तक कोशिश की ही नहीं गई...क्योंकि कोशिश करते ...तो दिल्ली में मजे कैसे लूटते....इसलिए आसान है कि नौकरियों में ही आरक्षण दे दो....वो तो संसद के एयरकंडीशंड हॉल में ही हो जाएगा...उसके लिए गांवों और कस्बों के धक्के खाने की ज़रूरत क्या है भला। शायद इसीलिए पिछड़े , 61 साल बाद भी पिछड़े हैं.....और अफसर वो बन रहे हैं जिनके मां बाप अफसर थे। नेताओं को नतीजे जल्दी चाहिए क्योंकि वो चुनावों में काम आते हैं.....उनके लिए समाज का ढांचा बदलना भी किसी सड़क या पुल के बनवाने जैसा है...जिसका बखान कर उन्हें अगला चुनाव जीतना होता है। लेकिन चूंकि इस तरह समाज नहीं बदलेगा....इसलिए आरक्षण की व्यवस्था भी चलती रहेगी..और चलती रहेगी दुकानें भी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment