गिरे हुए को
उठाने की
भटके को
आईना दिखाने की
फुरसत कहां है
'बिक'नी हसीना की
एक्सक्लूज़िव छींकें
चौके छक्के
चुटकुले
सपने-झूठ
जो बिकता है
वो दिखाते हैं
हमें मत सिखाओ
हम जानते हैं
कौन सी ख़बर है गर्म
सिद्धार्थ त्रिपाठी
युवा कवि
© सिद्धार्थ
एक नज़्म
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4 comments:
चौके छक्के
चुटकुले
सपने-झूठ
जो बिकता है
वो दिखाते हैं
bilkul sach likha hai-
sach hai-darshak jaanta hai ki 'sachchee breaking- khabar kya hai'
सिद्धार्थ जी बहुत खरी बात के गए हैं नज़्म के माध्यम से...बहुत खूब.
नीरज
सटीक!!
Nice poem, Siddharth.Its brevity and precision hits the bull's eye .
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