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वीएचपी की गुंडई




हिंदू हितों की वर्ल्ड चैंपियन विश्व हिंदू परिषद ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई ज़मीन वापस लेने के खिलाफ गुरुवार को देश भर में बंद का आह्वान किया था। बंद के आह्वान में कोई गलती नहीं है अगर वह जबरन न कराया जाए। लेकिन वीएचपी जैसे मिलिटंट संगठन से आप ऐसी उम्मीद कैसे कर सकते हैं ! नतीज़ा मध्य प्रदेश आग में सुलगा , चार लोगों की जानें गईं और कई स्थानों पर कर्फ्यू लगाना पड़ा।
इस दौरान सबसे घिनौनी घटना सतना में हुई जहां बंद समर्थकों ने एक व्यापारी की पिटाई कर दी क्योंकि वह अपनी दुकान बंद नही कर रहा था। परिवार वालों के सामने अपनी पिटाई का सदमा बर्दाश्त न कर पाने के चलते 28 साल के उस व्यापारी ने खुद पर किरासन छिड़क दिया। खुशकिस्मती से वह अभी ज़िंदा है। लेकिन यह घटना बताती है कि वीएचपी और बजरंग दल के लोगों और कार्यकर्ताओं का असली चेहरा क्या है !
हर उग्रवादी संगठन की तरह इसमें भी वही और वैसे ही लोग हैं जो तर्क और बहस से दूर भागते हैं। जो अपने मत के आगे बाकी सारे मतों और विश्वासों को छोटा और हेय मानते हैं। और जो उनके विचारों से सहमत न हो , उसे वे हथियारों या ताकत के बल पर दबाना चाहते हैं।
मैं सही कह रहा हूं या गलत , यह जानने के लिए आपको टीवी पर बंद समर्थकों के जो शॉट्स आ रहे थे , उन्हें अपनी आंखों के सामने लाना है। इंदौर हो या जम्मू , हर जगह डंडा और केसरिया झंडा हाथ में लेकर ये इस तरह घूम रहे थे मानो यह जंगल राज है और यहां उन्हें सबकुछ करने की छूट है। उनकी आंखों में आप हिंसा और घृणा की आंच देख सकते हैं। ये आंखें किसी हिंस्र पशु की आंखों से कितनी मैच करती हैं जो अपने शिकार पर हमला करने की ताक में है।
मामला सिर्फ वीएचपी का नहीं है। जो भी समुदाय या भीड़ सिर्फ अपने एजेंडे को लेकर चल रही है और उस एजेंडे में बाकी सारे समुदाय दुश्मन माने जाते हैं , उनके कार्यकर्ताओं की आंखों में आपको ऐसी ही आग दिखेगी। वे चाहे श्रीनगर में बम फेंकते आतंकवादी हों , नंदीग्राम में कत्लेआम करते मार्क्सवादी या देश को दहशत की आग में झोंकते मोदीवादी। आतंकवादियों और इनमें बस इतना फर्क है कि वे छुपकर वार करते हैं , ये सरेआम। ऐसे में कई बार यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि इनमें से ज़्यादा खतरनाक कौन है।
नीरेंद्र नागर

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कहने को ये एक ख़बर है.........

बारह साल के एक बच्चे को टीटीई ने चलती रेलगाड़ी से बाहर फेंक दिया। वजह थी पचास रुपये। इस कारण बच्चे को अपना दाहिना पैर और दाहिना हाथ गंवाना पड़ा। यह जानकारी सरकारी रेलवे पुलिस के सूत्रों ने दी। शंकर सिंह रेलगाड़ियों के डिब्बों की सफाई कर अपना गुजारा चलाता है। सूत्रों ने बताया कि बुधवार को राउरकेला रेलवे स्टेशन पर वह एक ट्रेन में चढ़ा। उसे एक सीट के नीचे से 50 रुपये का नोट मिला। टीटीई ने शंकर से 50 रुपये का नोट मांगा। शंकर ने इनकार कर दिया। इसे लेकर शंकर और टीटीई में झगड़ा हो गया और तब तक गाड़ी चलने लगी। सूत्रों ने बताया कि गुस्साए टीटीई ने उसे थप्पड़ जड़ा और खींचकर डिब्बे के दरवाज़े तक ले गया। उसके बाद टीटीई ने शंकर को चलती रेलगाड़ी से बाहर फेंक दिया। शंकर के एक दोस्त ने बाद में एफआईआर दर्ज कराई। सू़त्रों ने बताया कि शंकर को इस्पात जनरल अस्पताल में दाखिल कराया गया है जहां उसकी स्थिति नाज़ुक बताई जा रही है। घटना के तुरंत बाद सामाजिक संगठन जन कल्याण समिति ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और टीटीई की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की। राउरकेला के अडिशनल डीएम ने आश्वासन दिया कि लड़के का इलाज जिला रेडक्रॉस के फंड से कराया जाएगा। जीआरपी ने इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया है।

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एक नज़्म

गिरे हुए को
उठाने की
भटके को
आईना दिखाने की
फुरसत कहां है

'बिक'नी हसीना की
एक्सक्लूज़िव छींकें
चौके छक्के
चुटकुले
सपने-झूठ
जो बिकता है
वो दिखाते हैं
हमें मत सिखाओ
हम जानते हैं
कौन सी ख़बर है गर्म

सिद्धार्थ त्रिपाठी
युवा कवि


© सिद्धार्थ

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नाम गुम जाएगा,चेहरा ये बदल जाएगा

इस निजी डायरी के ज़रिए मैं आपको अपने अतीत के उस सफ़र का हमराही बनाना चाहता हूँ जो सफ़र पाकिस्तान की जेल में बीता। आगे बढ़ने से पहले मैं 20-25 वर्ष के 'जवान' कश्मीर सिंह के बारे में थोड़ा बताना चाहूँगा-वो कश्मीर सिंह जिसकी यादें केवल एक फ़ोटोफ़्रेम में जड़ी तस्वीर में क़ैद होकर रह गई हैं। घर की मेज़ पर रखी इस तस्वीर में जड़ा जवान कश्मीर सिंह मानो टकटकी लगाए बुढ़ाए, झुर्रियों वाले नए कश्मीर सिंह को पहचानने की कोशिश कर रहा हो। ग़नीमत है कि घर वालों ने इस तस्वीर को संभाल कर रखा हुआ है।
पंजाब के होशियारपुर ज़िले का एक छोटा सा गाँव था नंगलचोरां, वहीं 1941 में मेरा जन्म हुआ।
‘गाँव था’- ये इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मेरे पीछे से इस। गाँव का नाम नंगलचोरां से नंगलखिलाड़ियाँ हो गया है। अजीब विसंगति है -35 सालों में मेरा नाम बदल गया, बाहरी दुनिया भी बदली, कई लोगों को तो मेरा चेहरा-मोहरा पहचानने में भी दिक्कत होती है। इन तमाम बदलावों के बीच जेल से रिहा होने के बाद सोचा था कि अपने गाँव जाऊँगा, वापस आकर पता चला कि मेरे गाँव का नाम भी बदल गया है। हर चीज़, हर बात में बदलाव जैसे ये एहसास दिला रहें हो कि...ख़ैर छोड़िए आप इसे नंगलखिलाड़ियाँ कहें या नंगलचोरां, गाँव की मिट्टी तो वही है. बचपन-जवानी मेरी यहीं बीती. पढ़ाई-लिखाई तो मैने ज़्यादा की नहीं। और सच बात तो ये है कि जो कक्षाएँ पास की भी, नकल मार कर ही पास की हैं.
पुराने कश्मीर सिंह की यादें केवल एक फ़ोटोफ़्रेम में जड़ी तस्वीर में क़ैद होकर रह गई हैं। घर की मेज़ पर रखी इस तस्वीर में जड़ा जवान कश्मीर सिंह मानो टकटकी लगाए बुढ़ाए, झुर्रियों वाले नए कश्मीर सिंह को पहचानने की कोशिश कर रहा हो। किसी भी दूसरे गबरू-जवान की तरह मेरा भी ब्याह हुआ। ये 1964 की बात होगी। मेरी शादी परमजीत कौर से हुई। अच्छा ख़ासा परिवार था मेरा। तीन बच्चे थे- दो बेटे और एक बेटी।
मैं सन 1967 में पुलिस में भर्ती हुआ लेकिन पुलिस की नौकरी मैने ज़्यादा देर नहीं की और जल्द ही छोड़ दी-1967 से लेकर 1971 तक। नौकरी छोड़ने के कई कारण रहे.... समझिए कि इंसान से नौकरी में कई ग़लतियाँ हो जाती हैं और फिर कुछ पारिवारिक समस्या भी थी। नौकरी छोड़ने के बाद मैं साल-छह महीने घर पर ही रहा। उसके बाद 1973 में पाकिस्तान गया। यहीँ से शुरू हुआ वो सफ़र जिसने ज़िंदगी का रुख़ बदल डाला।लोगों के ज़हन में सबसे बड़ा सवाल शायद यही है कि मैं क्यों और कैसे पाकिस्तान गया. यहाँ मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा कि बस ‘पिकनिक’ मना रहा था और पाकिस्तानी सीमा में चला गया...या कहूँ कि पेट की ख़ातिर गया था और फँस गया जाकर. ...उसके बाद तो जैसे ज़िंदगी ही बदल गई. ..पाकिस्तानी सीमा पर वहाँ की फ़ौज ने पकड़ लिया. .....शुरू में मैने अपना नाम बताया मोहम्मद रफ़ीक़ और पिता का नाम गुलाम मोहम्मद. .....और ये नाम सोचे समझे थे.
पकड़े जाने के बाद ज़ाहिर है पूछताछ शुरू हो गई... पूछताछ का सिलसिला चलता रहा लेकिन मेरी ज़ुबान पर भी ताला लगा रहा. .....सबके मन में सवाल आता है कि मुझे पाकिस्तान की जेल में कैसे रखा गया होगा- परेशान किया होगा या मारा पीटा होगा. ...ये बड़ी स्वाभाविक सी बात है कि जब कोई इंसान पहले-पहले पुलिस के हत्थे चढ़ता है तो अच्छा सुलूक तो नहीं होता. ....यहाँ भारत में भी अगर पुलिस किसी आते-जाते को ही पकड़ ले, तो आमतौर पर उससे अच्छा बर्ताव नहीं करती, फिर मैं तो ग़ैर मुल्क का क़ैदी था. ....जेल में अकेले रखा गया- एकदम अकेले,किसी से मिलने की इजाज़त नहीं थी. समझिए कि बस आख़िरी को दो-चार महीनों में मैं लोगों के साथ घुला-मिला. ....पाकिस्तान आने से पहले मैं भारत में एक हँसता-खेलता परिवार छोड़कर आया था. बड़ा बेटा आठ साल का था, छोटा बेटा चार साल का और मेरी बच्ची तो बस डेढ़ साल की थी. ..जेल पहुँचने के बाद शुरू में मुझे रत्ती भर भी जानकरी नहीं थी कि परिवार वाले कैसे हैं और न ही उन्हें मेरे बारे में कुछ पता था. ......इस बीच मुझे नहीं लगा कि भारत सरकार ने मुझे छुड़ाने की कोई कोशिश की होगी या बातचीत की होगी.
1973 में पकड़े जाने के बाद सज़ा के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा मुझे. जल्द ही सज़ा-ए-मौत सुना दी गई.
28 मार्च 1978 को फाँसी लगना तय हुआ. फाँसी लगने में दो घंटे का समय बचा था. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था...किस्मत के इस खेल के आगे की कहानी अगली बार जारी रहेगी.(
(बीबीसी से साभार)

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एक पिता का जवाब





अमिताभ बच्चन को लोग एंग्री यंगमैन के तौर पर जानते हैं ...लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि व्यवस्था पर उनका गुस्सा पर्दे पर लोगों ने बाद में देखा....उस कुंठा का पहला शिकार उनके बाबूजी यानी हरिवंश राय बच्चन ही हुए थे। अमिताभ ने उस घटना का ज़िक्र अपने ब्लॉग में किया है जो न सिर्फ, 60 के दशक के एक युवा की कुंठा बयान करती है, बल्कि उनके पिता हरिवंश राय बच्चन की उस शख्सियत को भी रेखांकित करती है , जो एक बड़े कवि होने के साथ साथ एक पिता भी है। ब्लॉग में बिग बी ने लिखा है कि यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उन्हें किसी भी हमउम्र की तरह , कई बार उद्देश्यहीनता का एहसास होता था। 50 और 60 के दशक में आज के जैसी उदारवादी अर्थव्यवस्था तो थी नहीं कि सबसे पास करने को कुछ न कुछ होता। तब इस तरह का एहसास किसी भी किशोर के मन में आना स्वाभाविक था। बिग बी ने लिखा है कि तब कई बार मन में सवाल उठता था कि --मैं आखिर इस दुनिया में आया ही क्यों हूं... कुछ ऐसा ही गुस्सा लेकर भावुक अमिताभ बच्चन एक दिन अपने पिता से अपने सवालों का जवाब मांगने गए। पिता अपने कमरे में बैठे कुछ लिख रहे थे। गुस्से में ,चिल्ला कर अमिताभ ने पूछा --आपने मुझे पैदा क्यों किया ? पिता ने चौंक कर उनकी ओर देखा ...फिर चुपचाप कुछ समझने की कोशिश करते रहे...कोई कुछ नहीं बोला...अमिताभ बच्चन के मुताबिक --कमरे में मौन कुछ इस तरह पसर गया कि या तो मुझे तेज़ तेज़ चलती अपनी सांसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी या फिर बाबूजी की मेज़ पर रखी टेबल क्लॉक की टिक टिक। पिता की ओर से जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैं चुपचाप उल्टे पांव अपने कमरे मे वापस लौट गया... लेकिन रात भर सो नहीं पाया....अगली सुबह मेरे पिता जी मेरे कमरे में आए ...मुझे जगाया और मेरे हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा पकड़ा दिया--मैंने देखा वो एक कविता थी--नई लीक..जो कुछ इस तरह थी।


नयी लीक
----------
ज़िंदग़ी और ज़माने की कशमकश से
घबराकर मेरे लड़के मुझसे पूछते हैं
'हमें पैदा क्यों किया था ? '
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है
कि मेरे बाप ने भी मुझसे
बिना पूछे
मुझे पैदा किया था
और मेरे बाप से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें
और बाबा से बिना पूछे उनके बाप ने उन्हें
ज़िंदग़ी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी,
अब भी है..शायद ज़्यादा
आगे भी होगी शायद और ज़्यादा
तुम ही नयी लीक धरना
अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना।
--हरिवंशराय बच्चन

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पापा, जवाब दो ना


अब भी याद है 30 साल
पहले की वो बात
जय करते थे हम उस पार्क में
जहां थे मोर, खरगोशऔर थे बारहसिंघे
एक झरना था, पुल था ,
और था एक हाथी
बहुत बड़ा...

हाथी भी क्या खूब
जिसकी पूंछ से चढ़ते और सूंड़ से थे फिसलते
30 साल बाद पार्क अभी है , लेकिन बदरंग
हाथी है ,पर कमज़ोर
झरने की जगह बचा है, तो एक छोटा नाला
जिसमें पड़ी हैं बेजान सैकड़ों पन्नियां,
सिगरेट के डिब्बे और कंडोम
5 साल के मेरे बेटे के उस सवाल का जवाब
मेरे तो क्या
पूरे शहर के पास नहीं है
गेटकीपर,डिप्टी कलेक्टर , कलेक्टर, सीईओ,
एसपी,एसएसपी,और यहां तक कि डिविज़नल कमिश्नर
तक के पास नहीं
बेटे का सवाल था...
पापा.......वो बत्तखें कहां हैं जिनकी
कहानी तुम रोज़ सुनाते हो
जो कभी टहलती थीं किसी झरने में
जहां पानी होता था, हिरन चौकड़ी भरते थे
खरगोश थे ... उजले से,
साही भी था कांटों वाला
और था एक पत्थर का काला हाथी
क्या झूठी थी कहानियां...???

अफसरों से लदे इस शहर में
मैं मूक हूं
किससे पूछूं इसका जवाब
इसलिए सिर्फ कहता हूं
आप अगर इलाहाबाद के किसी
घर से पढ़ लिख कर बने हों कोई अफ़सर
और खेले हों कभी उस काले हाथी की गोद में
तो एक बार ज़रूर जाइएगा वहां
बचपन के रंगीन सपनों को
बदरंग हुआ
ज़रूर देखिएगा
ये विरासत शायद आपने ही
छोड़ी हो
अपने बच्चों के लिए

-----इलाहाबाद से स्कंद शुक्ला


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किरदारों पर दांव



कहते हैं कि कुछ पात्र कभी नहीं मरते... कुछ किरदार दर्शकों के दिलों पर ऐसा अक्स छोड़ जाते हैं जो गुजरते वक्त के साथ धुंधला होने की जगह और गहराता जाता है... फिल्म इंड्रस्ट्री में ऐसे किरदारों को भुनाने का दौर नया नहीं है... हॉलीवुड में तो ये फैशन है ही पर अब बॉलीवुड भी हर हिट किरदार को दोबारा भुनाना चाहता है... नगीना में श्री देवी की नागिन और सपेरे की दुश्मनी दुनिया ने देखी... फिल्म सुपर डुपर हिट रही और श्री देवी की नागिन ऐसा ही न भूलने वाला किरदार बन गई... लेकिन जब श्री देवी नागिन बनकर दोबारा निगाहों के ज़रिये पर्दे पर आईं तो वो दर्शकों के निगाहों में जगह नहीं बना सकीं... ये मिसाल भर है कि हिंदी फिल्म इंड्रस्ट्री में सिक्वल बहुत सफल नहीं रहे हैं... वास्तव में संजय दत्त मुंबई के डॉन बने तो दर्शकों ने उनकी अदाकारी का खूब सराहा... लेकिन वास्तव के सिक्वल हथियार में संजय दत्त के साथ शिल्पा शेट्टी की जोड़ी को खारिज कर दिया... लेकिन सिक्वल फिल्मों के लगातार प्लॉप के बाबजूद दमदार किरदारों का मोह डायरेक्टर नहीं छोड़ पाये... सिक्वल फिल्मों के प्रयोग में सिनेमा के साहूकारों को मोटा मुनाफा दिखाई देता है नहीं तो यशराज फिल्म्स, राकेश रोशन और विधु चोपड़ा जैसे बड़े बैनर सिक्वल पर इतना पैसा नहीं लगाते... लेकिन यहां ये बात भी ध्यान देने वाली है कि एक हिट फिल्म की सफलता से उसी किरदार पर बनने वाली दूसरी फिल्मों से उम्मीदें बढ़ जाती हैं और इसीलिए सीक्वल बनाने के लिए खास तौर पर तैयारी की जरूरत होती है...निर्माता निर्देशक पर दबाब होता है कि वो पिछली फिल्म से बेहतर फिल्म बनाए क्योंकि लोग सिक्वल फिल्म सिर्फ इसलिए देखने नहीं जाते कि फिल्म बेहतर हो बल्कि लोग उस फिल्म की पुरानी फिल्म से तुलना भी करते हैं... हॉलीवुड के जेम्स बॉण्‍ड की तर्ज पर हो सकता कि संजय दत्त मुन्ना भाई २, ३, ४, और ५ में भी देखने को मिलें... मुन्नाभाई एमबीबीएस के हिट होने के बाद लगे रहो मुन्ना भाई भी जबर्दस्त हिट रही थी... हिट सीक्वल फिल्मों में फिर हेरा फेरी का नाम भी शामिल है जो जबर्दस्त कॉमेडी फिल्म हेरा फेरी की सिक्वल है... एक्शन फिल्मों में धूम के बाद धूम २ आई पर सफल हुई सुपरनेचुरल पावर पर बनी कोई मिल गया की सिक्वल कृष... अब सुनने में आ रहा है कि घायल, नो एंट्री और रंग दे बसंती जैसी फिल्मों के सिक्वल की भी तैयारी चल रही है... यानी हिट फिल्मों के रीमेक को भले ही दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया हो पर हिट किरदारों के सिक्वल पर अभी फिल्मकारों का भरोसा बना हुआ है...
देवेश वशिष््ठ 'खबरी'
9811852336

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