मुद्दत बाद ऐसा हुआ
तुम पास से निकल गए
नि:शब्द...
मैं सिर्फ
उस हवा को छू पाया
जो तुम्हें छू कर
आई थी
ये क्या बात हुई
ये क्या बात हुई
मुद्दत बाद ऐसा हुआ
तुम पास से निकल गए
नि:शब्द...
मैं सिर्फ
उस हवा को छू पाया
जो तुम्हें छू कर
आई थी
ये क्या बात हुई
मुद्दत बाद ऐसा हुआ
तुम पास से निकल गए
नि:शब्द...
मैं सिर्फ
उस हवा को छू पाया
जो तुम्हें छू कर
आई थी
दाग झूठे हैं... देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
सच सुंदर होता है...
और दाग अच्छे...
आज तक यही कहा है मैंने...
यही पढ़ा है...
मैंने इन दागों पर सुंदर कविताएं लिखीं,
और हर बार सुंदर धब्बों पर यकीन किया...
मैं डूबा रहा रंगों में...
गरारे करता रहा अपनी ही कविताओं के देर तक...
मैंने इंद्रधनुष को सुंदर कहा...
और समेटता रहा आंखों में सुंदर ख्वाब...
ये जानकर भी कि सुबह टूट जाएगी नींद...
और आंखों के झूठे ख्वाब भी...
सोता रहा मैं... आंखें मूंद कर
समेटता रहा सुंदर वादों का बोझ...
जैसे पोटली खोलूंगा तो सब बचा रहेगा...
मैं अक्सर बांधता रहा मुठ्ठी में किनारे की चमकीली रेत...
चुनता रहा फूल ये मानकर कि ये कभी नहीं मुरझाएंगे
मैं बटोरता रहा मुस्कान, शाश्वत खजाने की तरह...
पर मैं गलत था...
सब सुंदर चीजें सच नहीं थीं...
इंद्रधनुष बादलों का धोखा था...
मुस्कानों में दुनियादारी का फरेब था...
वादों में छिपी थी गद्दारी...
मेरी सब कविताएं झूठी थीं...
मेरे ख्वाब नकली थे...
अच्छे दागों की तरह...
अच्छे दाग झूठे होते हैं अक्सर...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
हम भी तालिबान
हम '... वही हैं , जो तालिबान को जी भरकर कोसते हैं। वे लड़कियों के स्कूल जलाते हैं , हम उन्हें नामर्द कहते हैं। वे कोड़े बरसाते हैं , हम उन्हें ज़ालिम कहते हैं। वे टीचर्स को भी पर्दों में रखते हैं , हम उन्हें जंगली कहते हैं। ' हम ', जो हमारी संस्कृति और इज़्ज़त की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ' हम '... जो अपनी बेटियों के मुंह से प्यार नाम का शब्द बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह सुनते ही उबल उठते हैं कि जाट की लड़की चमार के लड़के के साथ भाग गई। उन्हें ढूंढते हैं , पेड़ों से बांधते हैं और जला डालते हैं ... ताकि संस्कृति बची रहे।
ख़बरी की एक गज़ल
हुनर भी सब चुक गया है, मुस्कुराने का
अब जमाना लद गया है- दिल लगाने का
छांव, बारिश, नीम, नदिया- सब पुरानी हो गयी
जबसे चलन चला है- मेहमानखाने का
फोन वाले प्यार की तासीर कम होती रही
कब से वाकया नहीं हुआ- सपनों में आने का
होली, दीवाली, ईद- सब दरिया में जा कर मर गए
अब सलीका खो गया है रंग लगाने का
हर रोज मुझसे घूंट भर- छूटता सा तू रहा
और जमाना चल पड़ा- हर चीज़ पाने का...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
दुनिया खट्टी होगी सब
मेरी गति दुर्धर है... तो?
तुम अपनी फिक्र करो,
नसीहत मत दो...
मैं जानता हूं रास्ते टेड़े करना...
तुम अड़ो, तो अड़ो।
कर्मण्येवाधिकारस्ते...
रट लिया... रट लो!
छाले मेरे हैं...
फैसला तुम क्यों लेने लगो?
नींद, सपने, लाड़, चुंबन,
सपनों ने सब तो छल लिया,
मैं पिटूंगा, पर लड़ूंगा,
तुम डरो, तो डरो!...
प्यार नहीं है कविता जैसा... तो?
भाव नहीं है राधा जैसा... तो?
तुम ढूंढो-फिरो... कन्हैया, राम, रसूल...
मैं जानता हूं... मैं बना रहना!
तुम खुदा बनो, तो बनो।
गर्म तवे पर,
बर्फ के डेले की तरह तड़पा हूं मैं...
हौसला करता हूं,
आग बुझेगी ये...
दही की हांड़ी में,
सहेजे सा जमा बैठा हूं...
उम्मीद में हूं,
दुनिया खट्टी होगी सब...
देवेश वशिष्ठ खबरी
9953717705