असल में ये कोना एक पंचायत है, जहां पंच हैं... लोगों की भीड़ है... और कई सवाल हैं जिनके जवाब हैं, मसले हैं जिन पर फैसलों की पूरी गुंजाइश हैं... यानी कोई खाली हाथ नहीं जाएगा... इस कोने का नाम सरपंच इसलिए है क्योंकि यहां आने वाला हर कोई कम से कम अपना सरपंच तो है ही... यानी जो बोले सो निहाल और जो खोले सो सरपंच।
किसी बेहद निजी याद की स्वान्त: सुखाय अभिव्यक्ति... लेकिन ऐसी याद जिसमें सब अपना अपना हिस्सा ढूंढ लेते हैं... आपकी सबसे अच्छी बात... आप लंबा नहीं लिखते... अच्छा लिखते हैं...
बहुत ही मर्मस्पर्शी और दिल को छू लेने वाली कविता है पर न जाने क्यों इस कविता और "माँ" को पढ़ कर ये अहसास होता है की आप जीवन के रोमानी पक्ष की अपेक्षा जीवन में रोजाना घटने वाले यथार्थ को अधिक महत्व देते हो कुच्छ भी हो भावपूर्ण अभिव्यक्ति शानदार है.वैसे ये भी महसूस होता है जैसे सरपंचजी के मanch पर आप और खबरी जी के बीच कविताओं और गज़लों की प्रतिस्पर्धा सी शुरू हो गई है जो निश्चये ही सरपंचजी के पाठकों के लिये एक सुखद समाचार है लिखते रहिये.....
शानदार...बेमिसाल...और सच को मधुरता के साथ पढ़ना बेहद ही सुकून भरा..ताकत उम्र में नहीं होती..लेकिन भरोसे को तोड़ती जरूर है..लेकिन आपकी कविता में सिर्फ भरोसा ही नहीं..बल्कि इंतजार करने में भी एक खुशी झलकती है.ताकत का मतलब सिर्फ अपनी ताकत से नहीं होता..बल्कि मेरा भी मानना है कि आप के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग यदि आपके होने से ताकत महसूस करते हैं..तो वो भी एक ताकत ही है..आपकी कविता में इस ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है..गौरी शंकर
4 comments:
waah !! bahut behtreen likha hai
gagar mein sagar
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
किसी बेहद निजी याद की स्वान्त: सुखाय अभिव्यक्ति... लेकिन ऐसी याद जिसमें सब अपना अपना हिस्सा ढूंढ लेते हैं... आपकी सबसे अच्छी बात... आप लंबा नहीं लिखते... अच्छा लिखते हैं...
बहुत ही मर्मस्पर्शी और दिल को छू लेने वाली कविता है पर न जाने क्यों इस कविता और "माँ" को पढ़ कर ये अहसास होता है की आप जीवन के रोमानी पक्ष की अपेक्षा जीवन में रोजाना घटने वाले यथार्थ को अधिक महत्व देते हो कुच्छ भी हो भावपूर्ण अभिव्यक्ति शानदार है.वैसे ये भी महसूस होता है जैसे सरपंचजी के मanch पर आप और खबरी जी के बीच कविताओं और गज़लों की प्रतिस्पर्धा सी शुरू हो गई है जो निश्चये ही सरपंचजी के पाठकों के लिये एक सुखद समाचार है लिखते रहिये.....
शानदार...बेमिसाल...और सच को मधुरता के साथ पढ़ना बेहद ही सुकून भरा..ताकत उम्र में नहीं होती..लेकिन भरोसे को तोड़ती जरूर है..लेकिन आपकी कविता में सिर्फ भरोसा ही नहीं..बल्कि इंतजार करने में भी एक खुशी झलकती है.ताकत का मतलब सिर्फ अपनी ताकत से नहीं होता..बल्कि मेरा भी मानना है कि आप के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग यदि आपके होने से ताकत महसूस करते हैं..तो वो भी एक ताकत ही है..आपकी कविता में इस ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है..गौरी शंकर
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