मेरे पद डगमग हैं... तो?
मेरी गति दुर्धर है... तो?
तुम अपनी फिक्र करो,
नसीहत मत दो...
मैं जानता हूं रास्ते टेड़े करना...
तुम अड़ो, तो अड़ो।
मेरी गति दुर्धर है... तो?
तुम अपनी फिक्र करो,
नसीहत मत दो...
मैं जानता हूं रास्ते टेड़े करना...
तुम अड़ो, तो अड़ो।
कर्मण्येवाधिकारस्ते...
रट लिया... रट लो!
छाले मेरे हैं...
फैसला तुम क्यों लेने लगो?
नींद, सपने, लाड़, चुंबन,
सपनों ने सब तो छल लिया,
मैं पिटूंगा, पर लड़ूंगा,
तुम डरो, तो डरो!...
प्यार नहीं है कविता जैसा... तो?
भाव नहीं है राधा जैसा... तो?
तुम ढूंढो-फिरो... कन्हैया, राम, रसूल...
मैं जानता हूं... मैं बना रहना!
तुम खुदा बनो, तो बनो।
गर्म तवे पर,
बर्फ के डेले की तरह तड़पा हूं मैं...
हौसला करता हूं,
आग बुझेगी ये...
दही की हांड़ी में,
सहेजे सा जमा बैठा हूं...
उम्मीद में हूं,
दुनिया खट्टी होगी सब...
देवेश वशिष्ठ खबरी
9953717705
1 comments:
बहुत ही शानदार कविता है, काफी आकर्षित करती है पर थोड़ी सी किलिष्ट है
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