सच सुंदर होता है...
और दाग अच्छे...
आज तक यही कहा है मैंने...
यही पढ़ा है...
मैंने इन दागों पर सुंदर कविताएं लिखीं,
और हर बार सुंदर धब्बों पर यकीन किया...
मैं डूबा रहा रंगों में...
गरारे करता रहा अपनी ही कविताओं के देर तक...
मैंने इंद्रधनुष को सुंदर कहा...
और समेटता रहा आंखों में सुंदर ख्वाब...
ये जानकर भी कि सुबह टूट जाएगी नींद...
और आंखों के झूठे ख्वाब भी...
सोता रहा मैं... आंखें मूंद कर
समेटता रहा सुंदर वादों का बोझ...
जैसे पोटली खोलूंगा तो सब बचा रहेगा...
मैं अक्सर बांधता रहा मुठ्ठी में किनारे की चमकीली रेत...
चुनता रहा फूल ये मानकर कि ये कभी नहीं मुरझाएंगे
मैं बटोरता रहा मुस्कान, शाश्वत खजाने की तरह...
पर मैं गलत था...
सब सुंदर चीजें सच नहीं थीं...
इंद्रधनुष बादलों का धोखा था...
मुस्कानों में दुनियादारी का फरेब था...
वादों में छिपी थी गद्दारी...
मेरी सब कविताएं झूठी थीं...
मेरे ख्वाब नकली थे...
अच्छे दागों की तरह...
अच्छे दाग झूठे होते हैं अक्सर...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
दाग झूठे हैं... देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
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4 comments:
मेरी सब कविताएं झूठी थीं...
मेरे ख्वाब नकली थे...
अच्छे दागों की तरह...
अच्छे दाग झूठे होते हैं अक्सर...
--बेहद भावपूर्ण और गहन रचना.
कविता बनती है तभी हृदय भाव संचार।
गर कविता झूठी हुई तो झूठा है संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दोनों परिचित टिप्पणीकारों का शुक्रिया...
धाग झूटे हों या सच्चे । आपकी कविता सच्ची है । वह झूची नही हो सकती ।
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