सज़ा
सज़ा के हक़दार भी
बड़ी ग़लतियां की हैं
तुम्हारे इस अंदाज़ ने
तुमने एक लम्हे को
इतिहास बनने
से रोक दिया था ना
अपने क्षणिक अहंकार
पर सवार तुम
पास से गुज़र गए
नि:शब्द
शब्दों के ग़रीब थे तुम
मेरे करीब थे
फिर भी इतिहास की ह्त्या
के अपराधी तो हो ही
कोख में मारा था ना तुमने
उसे
ख़ैर ....सज़ा ये है
कि जिसे मारा था
उसे ज़िंदा करो, प्यार से पालो
और फिर उसे पा लो
वो सिर्फ तुम्हारा था
तुम्हारा ही है
सदैव
--रा.त्रि
तू है, तो सब है
वो जो मंदिर की घंटियों की
घनघनाहट थीं न…
बड़ी कोशिश की
लेकिन अलग नहीं कर पाया
उन्हें तुम्हारी आवाज़ से
जैसे बड़े जतन से
किसी ने गूंथ रखा हो
दोनों को
किसने किसको खुद में समेटा है
नहीं मालूम
या तो जो तुम्हारी आवाज़ थी
वह मंदिर की घंटियों जैसी है
या फिर घंटियां तुम्हारी
आवाज़ में डूब कर
एकाकार हो गईं है
--रा.त्रि
घनघनाहट थीं न…
बड़ी कोशिश की
लेकिन अलग नहीं कर पाया
उन्हें तुम्हारी आवाज़ से
जैसे बड़े जतन से
किसी ने गूंथ रखा हो
दोनों को
किसने किसको खुद में समेटा है
नहीं मालूम
या तो जो तुम्हारी आवाज़ थी
वह मंदिर की घंटियों जैसी है
या फिर घंटियां तुम्हारी
आवाज़ में डूब कर
एकाकार हो गईं है
--रा.त्रि
पीली शर्ट वाला
मैं
देखती थी तुम्हें
लेमन येलो कलर की शर्ट में
और तुम जाने क्या करते रहते थे
नीचे देखते हुए
दाहिने पैर के
अंगूठे से ज़मीन खोदते हुए
और जैस ही तुम
सिर ऊपर उठाते थे
मैं अपनी आंखें कहीं और
घुमा लेती थी
बहाना था वो मेरा खुद से
कि ‘मैं तुम्हें नहीं देख रही थी ‘
हकीकत भी यही है कि
मैं दरअस्ल तुम्हें नहीं
.......
.......
खुद को देखती होती थी।
--रा.त्रि
देखती थी तुम्हें
लेमन येलो कलर की शर्ट में
और तुम जाने क्या करते रहते थे
नीचे देखते हुए
दाहिने पैर के
अंगूठे से ज़मीन खोदते हुए
और जैस ही तुम
सिर ऊपर उठाते थे
मैं अपनी आंखें कहीं और
घुमा लेती थी
बहाना था वो मेरा खुद से
कि ‘मैं तुम्हें नहीं देख रही थी ‘
हकीकत भी यही है कि
मैं दरअस्ल तुम्हें नहीं
.......
.......
खुद को देखती होती थी।
--रा.त्रि
और ये हो न सका
ऐसा भी हो सकता था
कि तुम और मैं
बात करते दूर तक
निकल जाते
तुम होते अपने सलीकों में
सजे संभ्रांत..
और मैं होती
अपने लहज़े में बिंदास...
फिर एक सन्नाटा
चलता थोड़ी देर
हमारे साथ
फिर पता है क्या होता...
अचानक मैं लिपट जाती
तुम्हारे गले से
किसी बेल की तरह
और इससे पहले कि हतप्रभ
तुम कुछ समझ पाते
तुम्हारे अधरों पर रख देती
अपना अमृतपात्र
पता है
मैं कर सकती थी वैसा
तुम चले तो होते मेरे साथ
कुछ देर...झूठमूठ ही सही
--रा.त्रि
कि तुम और मैं
बात करते दूर तक
निकल जाते
तुम होते अपने सलीकों में
सजे संभ्रांत..
और मैं होती
अपने लहज़े में बिंदास...
फिर एक सन्नाटा
चलता थोड़ी देर
हमारे साथ
फिर पता है क्या होता...
अचानक मैं लिपट जाती
तुम्हारे गले से
किसी बेल की तरह
और इससे पहले कि हतप्रभ
तुम कुछ समझ पाते
तुम्हारे अधरों पर रख देती
अपना अमृतपात्र
पता है
मैं कर सकती थी वैसा
तुम चले तो होते मेरे साथ
कुछ देर...झूठमूठ ही सही
--रा.त्रि
हंसना ज़रूर
सुनो
तुम अपनी हंसी
की पीली छटा
हर सुबह बिखेर दिया करो
मेरे पतझड़ वाले
आंगन में
ऐसे कट जाएगी
मेरी हर दुपहरिया
मैं वो हर दुपहर
सहेज कर रखूंगा
--रा.त्रि
तुम अपनी हंसी
की पीली छटा
हर सुबह बिखेर दिया करो
मेरे पतझड़ वाले
आंगन में
ऐसे कट जाएगी
मेरी हर दुपहरिया
मैं वो हर दुपहर
सहेज कर रखूंगा
--रा.त्रि
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