असल में ये कोना एक पंचायत है, जहां पंच हैं... लोगों की भीड़ है... और कई सवाल हैं जिनके जवाब हैं, मसले हैं जिन पर फैसलों की पूरी गुंजाइश हैं... यानी कोई खाली हाथ नहीं जाएगा... इस कोने का नाम सरपंच इसलिए है क्योंकि यहां आने वाला हर कोई कम से कम अपना सरपंच तो है ही... यानी जो बोले सो निहाल और जो खोले सो सरपंच।
चल देंगे फिर एक दिन कमंडल उठा कर उठा लेंगे डेरा-डंडा खोल देंगे जटाएं बैठ जाएंगे गंगा किनारे धूनी रमाए लेकिन याद रहे... हम अकेले नहीं हैं तुम मेरे कमंडल में हो गंगा जल की तरह सदैव --रा.त्रि
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