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घनघनाहट थीं न…
बड़ी कोशिश की
लेकिन अलग नहीं कर पाया
उन्हें तुम्हारी आवाज़ से
जैसे बड़े जतन से
किसी ने गूंथ रखा हो
दोनों को
किसने किसको खुद में समेटा है
नहीं मालूम
या तो जो तुम्हारी आवाज़ थी
वह मंदिर की घंटियों जैसी है
या फिर घंटियां तुम्हारी
आवाज़ में डूब कर
एकाकार हो गईं है
--रा.त्रि
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