देवेश वशिष्ठ खबरी
राष्ट्रपति भवन में कूड़ा डालना और पेशाब करना मना है...
देवेश वशिष्ठ खबरी
आकृति की मौत के बहाने
तुम खट्टी होगी...
तुम खट्टी होगी...
पर सच्ची होगी...
अभी छौंक रही होगी हरी चिरी मिर्चें...
खट्टे करौंदों के साथ...
या कच्ची आमी के...
या नींबू के...
या ना भी शायद...
नाप रही होगी अपना कंधा...
बाबू जी के कंधे से...
या भाई से...
और एड़ियों के बल खड़ी तुम्हारी बेईमानी
बड़ा रही होगी तुम्हारे पिता की चिंता...
तुम भी बतियाती होगी छत पर चढ़ चढ़
अपने किसी प्यारे से...
और रात में कर लेती होगी फोन साइलेंट...
कि मैसेज की कोई आवाज पता न चल जाए किसी को...
तुम्हें भी है ना...
ना सोने की आदत...
मेरी तरह...
या शायद तुम सोती होगी छककर... बिना मुश्किल के...
जब आना...
मुझे भी सुलाना...
गणित से डरती होगी ना तुम...
जैसे मैं अंग्रेजी से...
या नहीं भी शायद...
तुम लड़ती होगी अपनी मम्मी से...
पापा-भैया से भी,कभी कभी...
मेरी तरह...
पर तुम्हें आता होगा मनाना...
मुझे नहीं आता...
बताना...
जब आना...
तुम खट्टी होगी...
चोरी से फ्रिज से निकालकर
मीठा खाने में तुम्हें भी मजा आता होगा ना
तुम भी बिस्किट को पानी में डुबोकर खाती होगी...
जैसे मैं...
या शायद तुम्हें आता होगा सलीका खाने का...
मुझे भी सिखाना...
जब आना...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
क्यों कर ली मोहब्बत
मैं श्रवण कुमार
अपने कमरे की दीवार पर
टांग ली है मैंने
तुम्हारी 30 साल पुरानी तस्वीर
और बन बैठा हूं श्रवण कुमार
तस्वीर काफी पुरानी है अम्मां
तब तुम हंसती थी
घर के हर कोने पर
अपनी मौजूदगी का अहसास
कराती थीं
रसोई के मुहाने से लेकर
लॉन के आगे गेट तक
हर जगह था तुम्हारा साम्राज्य
लेकिन अब कहां हो तुम अम्मां
एक और तस्वीर है अम्मां
बाबूजी और तुम्हारी
काले सूट और टाई में बाबूजी
और बाईं ओर तुम
संतुष्ट गृहिणी की तरह
अब तुम्हें रोज़ सुबह
उठकर देख लेता हूं
और डींगें हांकता हूं
लोगों से कहता हूं कि मैं
याद करता हूं अपनी अम्मां को
फ्रेम में जड़ी तस्वीर वाली
अम्मां को।
मैं हूं श्रवण कुमार
ज़ुबान की राजनीति
चुनावी मौसम में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ना तो लाज़िमी है। लेकिन वोट बैंक जुटाने के लिए जिस तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं वो सिवाए लानत के मन में कोई और भाव पैदा नहीं करते। राजनीति में 'राज' से भी ज़्यादा 'अराजकता' का अस्तित्व फलता-फूलता दिखाई देने लगा है। वरुण गांधी का विलेन बनना, उस पर माया-मेनका की डॉयलॉग डिलीवरी और फिर कहानी में लालू का नया एंगल.. यानी एक पालीटिकल थीम पर बनने वाली फिल्म के लिए सारे चालू मसाले मौजूद हैं। मामला थमा भी नहीं था कि राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के खिलाफ़ जो ज़हर उगला, वो एक राजनैतिक लड़ाई कम और एक व्यक्तिगत लड़ाई ज़्यादा दिखाई दी। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह का महिला डीएम के साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना। नेताओं के बीच चल रहा ये वाक्-युद्ध ये पूछने पर मजबूर करता है कि...
- इस तरह का गैरजिम्मेदाराना और निहायती शर्मनाक व्यवहार अपनाने वाले नेताओं को क्या हम ये अधिकार देने के लिए तैयार हैं कि वो हमारा प्रतिनिधित्व करें ?
- लाखों लोगों के बीच चुनावी रैली करने वाले इन नेताओं के पास एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की बजाए क्या कोई वैचारिक ज़मीन या सोच है ?
- क्या हम कभी भी जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाएंगे और यूं ही इन घटिया मुद्दों के आधार पर वोटो का ध्रुवीकरण होता रहेगा ?
------मीनाक्षी कंडवाल-------
नीली छांह...
जरनैल का जूता
इराक के पत्रकर जैदी ने मानों दुनिया भर के लोगों को एक रास्ता दिखा दिया है। जब हद हो जाए-तो क्या करे कोई। 1984 में सैकड़ों सिख मारे गये थे और आज 25 साल बाद उन दंगों के सारे आरोपी बाहर हैं। जैदी के ज़हन में था इराक की बर्बादी का सवाल...उसने जूता मारने से पहले बुश से कोई सवाल नहीं पूछा था। बरसों से अपने ज़ेहन में पनप रहे ग़ुस्से को ज़ैदी ने एक शक्ल दी-जूता फेंक दिया...सीधे साधे जरनैल सिंह भी मन से हिंसक नहीं हैं। मैं उन्हें कई दिनों से जानता हूं....अगर सरकार बदमाशी पर उतर आए तो कोई सीधा साधा आदमी हताशा में क्या कर सकता है ...जरनैल का ऐक्शन यही बताता है।