तुम खट्टी होगी...
पर सच्ची होगी...
अभी छौंक रही होगी हरी चिरी मिर्चें...
खट्टे करौंदों के साथ...
या कच्ची आमी के...
या नींबू के...
या ना भी शायद...
नाप रही होगी अपना कंधा...
बाबू जी के कंधे से...
या भाई से...
और एड़ियों के बल खड़ी तुम्हारी बेईमानी
बड़ा रही होगी तुम्हारे पिता की चिंता...
तुम भी बतियाती होगी छत पर चढ़ चढ़
अपने किसी प्यारे से...
और रात में कर लेती होगी फोन साइलेंट...
कि मैसेज की कोई आवाज पता न चल जाए किसी को...
तुम्हें भी है ना...
ना सोने की आदत...
मेरी तरह...
या शायद तुम सोती होगी छककर... बिना मुश्किल के...
जब आना...
मुझे भी सुलाना...
गणित से डरती होगी ना तुम...
जैसे मैं अंग्रेजी से...
या नहीं भी शायद...
तुम लड़ती होगी अपनी मम्मी से...
पापा-भैया से भी,कभी कभी...
मेरी तरह...
पर तुम्हें आता होगा मनाना...
मुझे नहीं आता...
बताना...
जब आना...
तुम खट्टी होगी...
चोरी से फ्रिज से निकालकर
मीठा खाने में तुम्हें भी मजा आता होगा ना
तुम भी बिस्किट को पानी में डुबोकर खाती होगी...
जैसे मैं...
या शायद तुम्हें आता होगा सलीका खाने का...
मुझे भी सिखाना...
जब आना...
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
9953717705
तुम खट्टी होगी...
April 18, 2009 |
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देवेश वशिष्ठ खबरी
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10 comments:
खट्टी मीठी और कुछ प्रियतम जब हों पास।
खुशियों ही खुशियाँ रहे होते नही उदास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
तुम खट्टी होगी... पढ़कर ऐसा लगा मानो मैं इसे विजुवलाइज कर रहा हूं। इन फैक्ट ये चीजें किसी भी लेखन की सक्सेस को बयां करती है। अगर सलेक्शन ऑफ वर्ड को देखा जाय तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि लाजवाब है। हरेक पैरा में अपनी बातों को सलीके से रखने की कला काफी तारीफे काबिल है। सही में ये शब्द कहीं न कहीं आत्मा की आवाज तो नहीं है.....
तुम खट्टी होगी... पढ़कर ऐसा लगा मानो मैं इसे विजुवलाइज कर रहा हूं। इन फैक्ट ये चीजें किसी भी लेखन की सक्सेस को बयां करती है। अगर सलेक्शन ऑफ वर्ड को देखा जाय तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि लाजवाब है। हरेक पैरा में अपनी बातों को सलीके से रखने की कला काफी तारीफे काबिल है। सही में ये शब्द कहीं न कहीं आत्मा की आवाज तो नहीं है.....
बहुत उम्दा कविता है।
बिल्कुल खट्टा मीठा अंदाज ... बहुत खूब।
निश्चय ही कविता का हर छंद प्रेम के रस में डूबा हुआ है इसके अतिरिक्त कविता में जिस तरह से छोटी -छोटी रोज घटने वाली घटनाओं को प्यार की राह में महत्वपूर्ण बना के पेश किया गया वो ये दिखाता है प्यार करने वालों के लिये एक दुसरे की छोटी से छोटी बात भी बहुत बडी लगती है मैं भी जब छोटा था तो पानी में ग्लूकोस बिस्कुट डूबा कर खाता था लेकिन बड़े हो जाने के बाद मुझे ये बात अपने दोस्तों को बताने में शर्म आती थी शायद वो भी ऐसा करते हों पर उनके साथ भी वो ही समस्या थी क्यों की तब ऐसा लगने लगा था की ये बात बतायेंगे तो दोस्तों की नज़रों में बिलो स्टैण्डर्ड समझे जायेंगे पर कविता में वोही बात पढ़ कर पहेले तो चौके और फिर मज़ा आ गया
sachmuch aapne to kamaal kar rakha hai
कविता पढ़ने के लिए शुक्रिया श्यामल जी... बात उदास होने की नहीं है... फिर ये कविता तो पॉजिटिव है...
शुक्रिया कौशल जी... शब्द आत्मा की आवाज बनें, तभी कविता होती है... वैसे मैं अपने लिखे को कविता नहीं मानता...
पंचम जी और संगीता जी, हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद...
मनोज जी,
सच में बहुत कुछ छोटा छोटा हम सब अपनी जिंदगी में एक जैसा ही सहेजते हैं... बस कहते नहीं...
वाह! देवेश जी ने तो कविता से चित्र ही बना दिया। बल्कि एक सच्ची डाक्यूमेण्ट्री दिखा दी।
बधाई।
tum khatti hogi padh kar ekdum se laga jaise mera solahnwan vasant pichli khidki se mano jhankne laga...abhivyakti ki tahedil se sarahna karti hun...kisi anya kavita ki hi panktiyan hain..''prem ke samast anubhawon me sabse maulik hai pahla pyar...''itni hi maulikta ap ke shbdon me spasht dikhti hai..abhinandan..
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