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नीली छांह...


नीली स्याही... नीला कागज...

नीला बादल... नीला दु:ख...

नीली आंखों वाली की हर याद बहुत नीली है...

नीला सरगम... नीला पंचम...

नीली बातें... नीला चुप...

नीले-नीले जीवन की हर सांस बहुत नीली है...

लिख-लिख कर कागज पर सपने,

आग लगाए हाथों से...

जलते नीले सपनों की ये आग बहुत नीली है...

अब सूरज का बंद हुआ है,

मेरे घर आना जाना...

और तभी से इस कमरे की रात बहुत नीली है...

नीले पत्ते... नीली खुशबू...

नीली मिट्टी... नीली छांह...

मेरे रोपे हर पौधे की शाख बहुत नीली है...

नीला हंसना... नीला रोना...

नीला नीला कह देना...

अक्षय-अक्षय तेरी-मेरी, जात बहुत नीली है...


देवेश वशिष्ठ खबरी...

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5 comments:

Himanshu Pandey said...

प्रत्येक पंक्ति अपने आप में बेजोड़ है । इन पंक्तियों ने मुग्ध कर दिया :
"अब सूरज का बंद हुआ है,
मेरे घर आना जाना...
और तभी से इस कमरे की रात बहुत नीली है..."

RAJNISH PARIHAR said...

bahut khoob..shabdon ka achha jaal piroya hai aapne...

संगीता पुरी said...

वाह !! नीले की इतनी कहानी ... बहुत बढिया लिखा ... मेरा प्‍यारा रंग भी है।

राकेश त्रिपाठी said...

wah wah devesh
tum to bahut achchha likhne lage bhaii
shabaash...

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

शुक्रिया सर...