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बेटी, मैंने बहुत संघर्ष किया, अब हिम्मत हार रही हूं


दुनिया भर में जारी आर्थिक मंदी की राजधानी में पहली शिकार बनी एक मां जिसकी मौत के बाद गुमसुम हो गई है 13 बरस की नेहा। नीलम तिवारी (35) की 13 साल की बेटी नेहा अब गुमसुम है। 10 साल पहले आगरा में हुए ट्रेन हादसे में पिता को खोने के बाद अब उसकी मां नीलम भी नहीं रही। नीलम ICICI बैंक से लोन दिलवाने का काम करती थी...बदले में उसे कुछ कमीशन मिल जाया करता था...जिससे वो घर चलाती थी। घर में एक बूढ़ी मां हैं और है घर की जान-13 बरस की नेहा...जिसे मां की मौत ने गुमसुम कर दिया है। उसने अपनी मां को पंखे से झूलते हुए देखा....इसलिए अब रातों को जग कर चीखने भी लगती है। पिछले तीन महीने से नेहा की मां नीलम आईसीआईसीआई बैंक से एक भी लोन नहीं दिलवा पाई थी-नतीजतन दो दिन पूरा परिवार भूखा रहा और फिर एक दिन....नीलम को छुटकारे का एक रास्ता सूझा-उसने फांसी का फंदा बनाया और झूल गई।
कहानी के असली दर्द से आपकी पहचान कराना अभी बाकी है। इस परिवार में अब न तो कोई पुरुष है और न ही कोई कमाने वाला। मौके से पुलिस को तीन स्यूसाइड नोट मिले। बेटी नेहा को लिखे नोट में नीलम ने लिखा 'मैंने अब तक बहुत संघर्ष किया है। अब हिम्मत हार रही हूं। बेटा, आगे का सफर तुम्हें खुद तय करना होगा'। बूढ़ी मां को लिखे नोट में उसने माफी मांगते हुए लिखा कि 'दूर-दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा। आपकी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि कोई मदद कर सकें। मेरे पास न तो किराया देने के पैसे हैं और न खाने के। मेरे घर का सामान बेचकर मेरी बेटी की पढ़ाई का कम से कम यह साल जरूर पूरा करा देना'। तीसरा नोट नीलम ने पुलिस को लिखा और अपनी मौत का जिम्मेदार आर्थिक तंगी को बताया। दिल्ली के द्वारका इलाके के सेवक पार्क में रहने वाली माया शर्मा के घर की हालत देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान का दिल पिघल सकता है। घर में माया, उनकी अविवाहित बेटी और नेहा ही हैं। कमाने वाला कोई नहीं है.....नेहा पढ़ाई में बहुत होशियार है... आठवीं क्लास में उसके 95 फीसदी नंबर आए थे। लेकिन अब वो इस स्थिति में नहीं हैं कि उसकी पढ़ाई जारी रखवा सकें। उन्हें उम्मीद है कि कोई गैर सरकारी संगठन नेहा की मदद करने आगे आएगा।
कानपुर की रहने वाली नीलम की शादी 1994 में आगरा के रहने वाले दिलीप तिवारी से हुई थी। 1998 में आगरा में हुए ट्रेन हादसे में दिलीप की मौत हो गई। नीलम ने दूसरी शादी नहीं की और एक साल की बेटी को साथ लेकर मां और बहन के साथ दिल्ली आ गई। माया ने बताया कि उन्होंने नीलम से कई बार शादी करने के लिए कहा था, लेकिन वह तैयार नहीं होती थी। पहले वह पीरागढ़ी में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी। एक साल से उसने आईसीआईसीआई बैंक से लोन दिलवाने का काम शुरू किया था। लेकिन आर्थिक मंदी ने रोजी-रोटी का यह आसरा भी खत्म कर दिया।
लेकिन चिंता का विषय कुछ और है...दिल्ली के जामिया नगर में मारे गये आतंकियों के बचाव में बुद्धिजीवियों ने देश भर में जम कर प्रदर्शन किए थे। ऐसे मौकों पर कहां हैं वो....लाख टके का सवाल यही है। मंदी पर लंबे और उबाऊ व्याख्यान देने वाले , दाढ़ीयुक्त चेहरे वाले बुद्धिजीवी , जो अगले दिन अखबारों में अपनी फोटो खोजते हों .... कहां हैं ? किसी पुलिस इंस्पेक्टर की शहादत पर सवाल उठाने वाले बेहया नेताओं की जमात अब क्यों नहीं बोलती.....और तो और अखबार और टीवी वाले इसे स्टोरी क्यों नहीं मानते...सोचने वाली बात यही है।

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6 comments:

संगीता पुरी said...

बेचारी नीलम के लिए 13 वर्ष की जवान बच्ची को छोड़कर मरना भी कितना कठिन रहा होगा...... बहुत बड़ी मजबूरी में उसने ये कदम उठाया होगा..... लेकिन क्या फर्क पड़ेगा समाज के लोगों को ....देश के नेताओं को ....निजी चैनलों को ....स्यंसेवी संस्थाओं को ...उनके लोग तो अपने लिए पैसे बनाने में ही लगे रहेगे।

जहाजी कउवा said...

राकेश जी क्या आपको कोई तरीका मालूम है इस परिवार से संपर्क साधने का. हम हिन्दी ब्लोगर्स को भी कुछ आगे बढ़ कर सहायता करनी चाहिए, मुझे पूरा विश्वास है कि अगर इस बच्ची का पता मिले तो इस कि सहायता के लिए लोग आगे आयेंगे, निसंदेह मैं भी ..

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस बेरोजगारी ने बहुतों की जान ली है लेकिन किसी की आँख में आसूँ नहीं आएंगे। आप को हर मुहल्ले में एक नीलम मिल जाएगी। यह समाज पत्थर हो चुका है। मदद से कुछ नहीं होगा। उस बीमारी का इलाज करना होगा जो ये जानें ले रही है।

Udan Tashtari said...

बहुत दुखद..दिनेश जी सहमत हूँ कि मदद से कुछ नहीं होगा। उस बीमारी का इलाज करना होगा जो ये जानें ले रही है।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बढ़ते बाजारवाद और पूँजी की अन्धी दौड़ का चमकीला चक्र अब अवसान पर है, अब घोर अन्धकार की बारी है। पूँजीवाद का मस्त हाथी अब पोरस की सेना को रौंदने ही वाला है।

ऐसी असंख्य मौतें खबर बनने का इन्तजार कर रही हैं। बल्कि कुछ दिनों बाद यह बात खबर के लायक भी नहीं रह जाएगी, जैसे भारत में किसानों की आत्‍महत्या का हाल हो चला है।

sudhakar said...

rakesh ji hame kuch karna hoga.
nischit roop se samasya ki jade khojna jaroori hai par tab tak neha ka kya? kya aap dharatal par aakar kuch karne me meri madad karna chahenge? aabhari rahunga.
colins229@rediffmail.com
09454188574


sdhakar mishra
computer teacher