RSS

मारा या बचाया ?


वो सिर झुकाये चुपचाप ज़मीन पर बैठा था। थानों में यूं भी अपना अपराध स्वीकार कर लेने वालों को स्टूल या कुर्सी देने की प्रथा कहां है....वो तो रसूख वालों या फिर इलाके के गुंडे बदमाशों के लिए होती है। खैर- ज़मीन पर बैठा 24 साल का वो शख्स बुत की तरह गुमसुम था। उसने अपनी दो दिन की बच्ची का गला घोंट कर मार डाला था। जानते हैं दो जून की रोटी कमाने के लिए करता क्या था वो-गुब्बारे बेचता था...उन बच्चों के लिए जिन्हें खाने को रोटी मिल जाती है। लेकिन अपनी दो दिन की बच्ची को वो भूख और गरीबी के भरोसे इस दुनिया में नहीं लाना चाहता था । उसने ऐसा क्यों किया...इसका जवाब ...पुरुलिया के पुलिस स्टेशन में बैठे इस आदमी ने ये कह कर दिया कि-- 30 रुपये रोज़ कमाने वाला... बीवी , मां और तीन बेटियों को कैसे पालता। जो उसने नहीं कहा वो ये कि कैसे वो ज़माने को सौंप देता बेटी को...आज नहीं तो कल भूखे समाज की शिकार तो होना ही था उसे ....इसलिए उसे मारकर असल में मैंने खुद को और अपने परिवार को बचाया है।

(टिकर पर आई एक ख़बर...जिसे बस मैंने कुछ कपड़े पहना दिए)

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

5 comments:

manvinder bhimber said...

bahut hi maarmik......ankhen nam hi gai hai......je khabar es khabar nahi...hmare smaaj ka aaina bhi hai

संगीता पुरी said...

बेहद दर्द भरी दास्तान....पता नहीं क्या फैसला हो.....क्या इसकी सजा गरीब को मिलनी चाहिए ?

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

यदि उस उस गरीब को सपरिवार जेल भेंज दें तो उसका भला हो जाय। भर पेट भोजन तो पा ही जाएगा।

वैसे भी यह पूरा परिवार ही तो है जिसकी हालत ने उससे उस मासूम को समाज से ‘बचाकर’ मार डालने के लिए प्रेरित किया।

दोषी तो समाज भी है लेकिन उसे पकड़ेंगे कहाँ?

Manojtiwari said...

हमारे देश में सरकारी गोदामों में पड़ा अन्न सड़ जायगा चूहे खा जायेंगे पर गरीबों को खाने के लिये नहीं दिया जायगा पर यदि कोई गरीब अपने परिवार को जिल्लत की जिन्दगी से बचाने के लिये कोई अपराध कर दे तो उसे सजा देने में कोई कोताही नहीं की जायगी ये विडंबना नहीं तो क्या है?

SUDHIR KUMAR PANDEY said...

शायद ये उभरते भारत की असली तस्वीर है...आपका लेख पढ़ते वक्त मेरे जहन में दो बाते एक साथ आ रही थी...पहली.. दोष किसका है... उस सरकार का जो अपनी जनता को सिर्फ खोखले वादे देती है... या फिर उस बाप को जिसने बच्चा तो पैदा कर लिया पर उसका भरण पोषण कैसे होगा ये ना समझ पाया...औऱ दूसरी ये.... क्या इसके जिम्मेदार हम नहीं जो इतनी दूर बैठ कर दुख तो जता देते है पर हाथ बढ़ाकर उनका दर्द नहीं बांटते..
सुधीर कुमार पाण्डेय
सीएनईबी