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मैं भी मराठी मानुस हूं...लेकिन..


मंगलवार को महाराष्ट्र में करीब 202 एसटी बसें , 350 टैक्सियां , 8 ऑटो , 115 बेस्ट बसें , 3 ट्रक और 4 प्राइवेट गाड़ियों को या तो जला दिया गया या फिर बुरी तरह से तोड़ दिया गया। इन्हीं क्षतिग्रस्त गाड़ियों में से एक मेरी गाड़ी है। राज ठाकरे की तरफ से दावा किया जाता है कि यह सब मराठी मानुस के लिए किया जा रहा है। चाहे कुछ भी क्यों न हो , यह बात तो तय है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के नेता राज ठाकरे को आम महाराष्ट्रियन से तो कोई मतलब नहीं है। मुझे तो लगता है कि राज को खुद भी अंदाजा नहीं है कि उनकी लड़ाई किसके लिए है। राज ठाकरे की गिरफ्तारी की खबर के साथ ही मुझे अंदाजा हो गया था कि पूरा दिन जबरदस्त तरीके से हंगामाखेज़ होने वाला है। लेकिन एक पत्रकार और एक महाराष्ट्रियन होने के नाते मुझे पूरा यकीन था कि मैं पूरी तरह से सुरक्षित हूं। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ' ऐंटी नॉर्थ इंडियन ' आंदोलन का शिकार मैं बनूंगा। लेकिन मेरा यह विश्वास घर से ऑफिस जाते वक्त पलभर में ही टुकड़े-टुकड़े हो गया। मंगलवार को जैसे ही मैं अरुण कुमार वैद्य रोड से माहिम की तरफ मुड़ा , अचानक ही 4 लोग मेरी कार के सामने आ गए। मुझे लगा कि वे लोग शायद लिफ्ट मांगने के लिए रोक रहे हैं , क्योंकि रास्ते में कोई टैक्सी या गाड़ी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा कि वे लोग किसी साधन के अभाव में मुझसे लिफ्ट लेने की गुजारिश करेंगे। लेकिन अगले ही पल मेरी इस आशावादिता की धज्जियां उड़ गईं। बिना कुछ जानने की कोशिश किए उनमें से दो लोगों ने मेरी कार के अगले शीशे पर बड़े-बड़े पत्थर दे मारे। इस दौरान तीसरा शख्स मेरी कार का पिछला शीशा तोड़ने में लगा था। मुझे आतंकित किया चौथे शख्स ने , मेरे कुछ भी कहने से पहले ही उसने मेरे ऊपर एक जलता हुआ टायर फेंक दिया। कार के अंदर ही भस्म हो जाने के डर से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं वहां से भाग खड़ा हुआ और तभी रुका जब मुझे सेंट माइकल चर्च के पास एक पुलिसवाला दिखाई दिया। फिर पुलिसवालों ने अपना पुलिसिया रवैया दिखाते हुए मेरी शिकायत दर्ज करने से पहले माहिम और बांद्रा पुलिस स्टेशनों के बीच दौड़ाया। लेकिन मेरी दिक्कत यह नहीं है कि मेरी शिकायत दर्ज क्यों नहीं हुई। मेरी कार भी कुछ दिनों में रिपेअर होकर सड़क पर दौड़ने लगेगी। मेरी असली दिक्कत है मेरा विश्वास , मेरा भरोसा जो अब टुकड़े-टुकड़े हो चुका है ! उस दिन छिन्न-भिन्न हो चुके मेरे विश्वास का क्या होगा ? मुंबई मिरर को दिए एक इंटरव्यू में राज ठाकरे ने कहा था कि उनके लोग किसी भी किस्म आंदोलन से पहले याचना करते हैं , वे कोई कार्रवाई करने से पहले चेतावनी या ज्ञापन देते हैं। उस दिन मेरी कार तोड़ने से पहले क्या किसी ने मुझसे पूछा ? मैंने मराठी मानुस से कौन सा अन्नाय किया था ? मैं खुद मराठी मानुस हूं , मैं यहीं पैदा हुआ और मेरी परवरिश यहीं हुई। मेरे पैरंट्स , मेरे पुरखे सभी मराठी हैं। मैं मराठी बोलता हूं , मराठी पढ़ता हूं और मराठी लिखता हूं। मैंने मराठी मीडियम के स्कूल में ही पढ़ाई की है , जैसा कि राज के अंकल (बाल ठाकरे) ने दशकों पहले ' आदेश ' दिया था (यह अलग बात है कि उनके खुद के पोते मराठी मीडियम के स्कूल में नहीं पढ़ते)। और तो और , बैंक के चेक पर मैं हस्ताक्षर भी मराठी में ही करता हूं। मैंने किसी महाराष्ट्रियन की नौकरी नहीं हड़पी।
दीपक लोखंडे
सिटी एडीटर, मुंबई मिरर
(नवभारत टाइम्स से साभार)

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4 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

दीपक जी, महाराष्ट्र में पैदा होने को शायद ठाकरे ब्रिगेड मराठा मानुस नहीं मानती। आपके चेहरे पर जबतक संकुचित दृष्टि और अखिल भारतीय राष्ट्रवाद का विरोध न झलके, आपके भीतर पाखण्ड और दुष्टता का भाव हिलोरें मारता न नजर आये तब तक आप मराठा मानुस कहलाने और ठाकरे क्षत्रप की छत्रछाया के हकदार नहीं होंगे।

Unknown said...

जब नफरत को एक औजार के रूप में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तब उसे कुछ भी नाम दें क्या फर्क पड़ता है. महाराष्ट्र में हैं तो कह दिया मराठी मानुस के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस के विरोध में जब विहार में आगजनी हुई तो कह दिया विहारियों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यही नंदीग्राम में हुआ. यही सिंगूर में. आज़ादी के पहले दिन से यही हो रहा है. इसिहास उठा कर देख लीजिये, इन लोगों ने केवल नफरत फैलाई है. नाम कोई हो,पार्टी कोई हो, प्रदेश कोई हो, भाषा कोई हो. यह लोग विभाजन करते हैं लोगों को एकता के सूत्र में नहीं बांधते. इनके नाम बदल जाते हैं, काम वही रहते हैं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

झगड़ा मराठी और गैर मराठी का है ही नहीं। झगड़ा तो बेरोजगारी का है। उस से लड़ नहीं सकते तो राजनीति चमकाने को जनता को आपस में लड़ाते हैं। और जनता अनुभव से सीखती है। सीख रही है।

अजित वडनेरकर said...

दिशाहीन राजनीति.....
शर्मनाक है सब...