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एक मां का रोना

मुंबई में एक लाल रंग की बस को सैकड़ों लोग घेरे हुए हैं.....उसमें एक अपराधी है जो राज ठाकरे को मारने आया है...भीड़ बस पर पत्थर फेंक रही है .... शीशों पर डंडे बरसा रही है...आखिर एक मराठी पर कोई हमला करने की सोच भी कैसे सकता है....कुछ वक्त बाद पुलिस आती है और एक शातिर (?) को गोली मार देती है। जो मारा जाता है वो राहुल राज है और जो जिंदा है वो राज। राहुल की मां पर जो बीती होगी .... उसकी कल्पना मियां मसरूफ ने की है। लाइव इंडिया न्यूज़ चैनल में entertainment desk में काम करते हैं और लिखते अच्छा हैं। आप भी देखिए--


गया तो ख़्वाब हज़ारों थे उसकी आंखों मे
जो आया लौट के तो ख्वाब बनके आया है..........................................!!!!
जिसे सुलाता था रातों को लोरियां देकर
जिसे चलाता था हाथों में उंगलियां देकर
कहां है वो जिसे आंखों का नूर कहता था
कहां है वो जिसे दिल का सुरूर कहता था...
मेरे मकान में तस्वीर उसकी आज भी है
दरीचे याद में डूबे हैं मां को आस भी है
तुम्हारी मां तेरे आने की राह तकती है
कहां हो तुम तेरे दीदार को सिसकती है...
तुम्हारी राखी है घर के अंधेरे ताख़ पे जो
बहन ने दी थी तुम्हें जिस वजह से याद है वो
उसी का कर्ज़ मेरे लाल तुम चुका जाते
तुम अपनी बहन के मिलने बहाने आ जाते...
कहां गए थे जो सीने में ज़ख़्म ले आए..
ये धब्बे खून के तुमने कहां पे हैं पाए
किसी ने तुमको बड़ी बेदिली से मारा है
तुम्हारी मां की भरी गोद को उजाड़ा है
सुना था देश के क़ानून में वफ़ा है बहोत़
सुना था इनकी अदालत में फैसला है बहोत
इन्हें कहो कि मेरा लाल मुझको लौटा दें
इन्हे कहो कि गुनहगार को सज़ा दे दें..
दुआएं देती थी तुझको जिये हज़ार बरस
दुआएं करती रही और गुज़र गया ये बरस
मगर ये क्या कि तुझे ये बरस न रास आया
तेरी उमीद भी की और तुझको ना पाया
कहां हो तुम मेरे नूर-ए-नज़र जवाब तो दो
कहां हो ऐ मेरे लख्त-ए-जिगर जवाब तो दो
कहां गए हो कि वीराना चारों सू है बहोत
कहां गए हो कि दुनिया में जुस्तजू है बहोत
कब कहां किसकी दुआओं के सबब आओगे
किस घड़ी ऐ मेरी उम्मीद के रब आओगे
कुछ तो बेचैनी मिटे मां की तेरे ऐ बेटा
ये बताने ही चले आओ कि कब आओगे...
तमाम शुद !!!!

--मसरूर

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7 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

मसरूर ने सच लिखा है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

उस माँ को हमारी संवेदना भेंजिएगा...। मियाँ मसरूफ को इस सुन्दर रचना के लिए साधुवाद...।

sunil choudhary said...

marmsparshi,sach hi to likha hai

Vivek Gupta said...

सुंदर चित्रण |

jaideep shukla said...

मुझे खुशी है कि अभी भी हमारे देश भारत में ऐसे कुछ लोग हैं जो दूसरों के दुख-दर्द को समझते हैं....और उन्हीं कुछ लोगों में से एक हैं मसरूर अब्बास जो कि पेशे से एक मिडिया पत्रकार हैं...जिन्होनें न सिर्फ उस मां के दर्द को महसूस किया बल्कि उसे अपनी कलम की ताकत द्वारा आम जनता तक पहुँचाने का काम भी किया... i am really feeling very pround of you that you have done such a great job . and i wish that you would continue such type of grt work . and would enlighten the whole world with your writting skills...

jai shukla

Rajnish BaBa Mehta said...

क्यों आते हो तुम

बनते बिगड़ते रहते रिश्ते मेरी कविताओं में,
कभी पतझड़, कभी वसंत दिखता है मेरी कविताओं में,
नाराज़ परेशान जब भी होते तुम अपनी जिंदगी में,
राहत कि एक किरण ढूंढ़ते हो मेरी कविताओं में,
ज़िंदगी में चले हो तुम रकीबों के काफिलों में,
जब भी जरूरत महसूस कि तुमने दोस्तों की
चले आए मेरी कविताओं में।
हर मोड़ पर तुम्हें एक शख्स मिला एक सवाल मिला,
उस शख्स का चेहरा तो मिला पर जबाब नहीं मिला,
नाउम्मीद होकर भी मंजिल की तरफ बढ़ते रहे तुम,
अपने हिम्मत की कद्र खुद ही करते रहे तुम,
हर पल टूटते हैं सपने, बिखरता है ख्वाब, तुम्हारी ज़िंदगी में,
क्यों चले आते हो तुम, फिर भी मेरी कविताओं में।

------ रजनीश कुमार
स्पोर्ट्स डेस्क लाइव इंडिया
इस खास रचना पर भी ध्यान दिया जाए सर

Unknown said...

Tum jaise agar 50% log is duniya main ho jayen to is desh ke makkar netaaon ke chehre par chadhe huvy bhayanak naqab ko utar ke pheka ja sakta hai. Well done masroor abbas u have done a good job. Taniya